________________ 238 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। उत्पन्न हुए हो ? तुम्हारे पिता कौन हैं और तुम्हारी जन्मभूमि कहाँ है ?" यह सुन, वत्सराजने कहा,-"अभी आप मुझसे मेरा परिचय न पूछिये, समय आनेपर मैं स्वयं सब कुछ कह दूंगा।" जब उन्होंने ऐसा कहा, तष राजकुमारोंने उनका मतलब समझकर, ऊपरसे कुछ भी ज़ाहिर न करते हुए, वत्सराजको बड़े प्रेमसे भोजन-वल आदि देना आरम्भ किया। - एक दिन आचार्य, उन सब राजकुमारोंको साथ ले, वत्सराजको भी अपनी मण्डलीमें शामिलकर, राजाके पास आथे। वहाँ आ, कुमार राजाको प्रणाम कर, उचित स्थानपर बैठ रहे। राजाने वत्सराजको अजनबी समझकर कुमारोंसे पूछा,- "पुत्रो ! तुम्हारे साथ यह नया लड़का कौनसा है ?" उन्होंने कहा, “इनको हमलोगोंने अपना बन्धु बनारखा है।" इसके बाद राजाने कलाचार्यसे पूछा, "यह किसका पुत्र है ? इसकी कला-कुशलता कैसी है ?" यह सुन, कलाचार्यने कहा,-."महाराज! मुझे इस लड़केके कुल आदिका बिलकुल पता नहीं है / परन्तु इसकी कलाकुशलता ऐसी है, कि कोई इसकी बराबरीका नहीं दिखलाई देता / " यह सुन, राजाने पहले सष राजकुमारोंकी परीक्षा ली। इसके बाद उनकी आज्ञासे वत्सराजने भी अपनी कुशलता उनपर प्रकट की। राजाने उनकी विज्ञानकला और चतुराईका चमत्कार देख, उनसे कहा,हे पुत्र ! तुम अपने कुलका मुझे परिचय दो ; क्योंकि छिपे हुए मोती. का कुछ मूल्य नहीं होता। यह सुन, वत्सराजने सोचा,-"पूर्वाचार्यने कहा था, कि _ 'प्रस्तावे भाषितं वाक्यं, प्रस्तावे दानमांगनाम् / प्रस्तावे वृष्टि रल्पाऽपि, भवेत्कोटिफलप्रदा // 1 // ' अर्थात 'समयपर बोला हुआ थोडासा वाक्य, समयपर किसीको जस दिया हुआ थोडासा दान और समयपर होनेवाली थोडीसी वर्षा भी करोडगुना फल देनेवाली होती है।' .. . .. P.P. Ac. Gunratnasuri M.3, Jun Gun Aaradhak Trust