________________ " पञ्चम प्रस्ताव / 237 को छिपाकर, लकड़ीका काँवर ले, हाथमें एक मामूलीसी लकड़ी लिये घरकी ओर चले। क्रमशः वे नगरद्वारके पास पहुंचे। वहां उन्होंने द्वार-रक्षकको हाथकी मामूली लकड़ी धरा दी और आप घरकी तरफ बढ़े। बाज़ारमें जहाँ-जहाँ चन्दनकी खुशबू फैली, वहाँ-वहाँके लोग अचम्भेके साथ चारों ओर देखने और विचार करने लगे, कि यह खुशबू कहाँसे आ रही है ? " इसप्रकार विस्मित होकर, एक आदमीको लकड़ी लिये जाते देखकर भी उन्होंने सोचा, कि हवाके झोंकेसे उड़कर यह सुगन्ध कहींसे यहाँ तक आ रही है। लोग इसी सोचविचारमें रहे, तबतक वत्सराज अपने घर पहुँच गये और एक ओर लकड़ीका काँवर रख, उसका एक छोटासा टुकड़ा मासीके हाथ में देकर बोले, "मासी ! तुम गन्धीकी दूकान पर इसे ले जाओ और इसका जो दाम मिले, वह लेती आओ / " ' विमला उस चन्दनके टुकड़ेका बहुतसा दाम ले आयी। यह देख, क्त्सराजने अपनी माता और 'मासीसे कहा,-"अब हमें पराये घरकी नौकरी करनेकी ज़रूरत नहीं। जो कुछ अन्नादिकी ज़रूरत होगी, वह इसी द्रव्यसे खरीद लिया जायेगा। सेठके मकानका भाड़ा भी दिया जायेगा। यह सब चुक जाये, तो फिर दूसरा टुकड़ा ले जाकर बेंच आना। यह लकड़ी चादनकी है। इसके प्रतापसे अब तुम्हारे घरमें धनकी कमी नहीं रहेगी। इसलिये अब हमें पराधीन होकर रहनेका काम नहीं है। दिनभर मज़ेसे खाऊखेलूंगा। रातको सदा घर आया करूँगा, तुम किसी तरहकी फिक्र अपने मनमें न आने देना।" __ यह कह, वत्सराज राजकुमारोंके पास गया। उन्होंने कहा,"क्यों भाई ! तुम कल क्यों नही आये ?" वत्सराजने कहा,-"कल मेरी तबियत अच्छी नहीं थी, इसीसे नहीं आया।” राजकुमारने कहा,"मित्र ! हमने तुम्हारा घर नहीं देखा है, नहीं तो ज़रूर तुमसे मिलकर तुम्हें देख आते।" यह सुनकर वत्सराजको बड़ी प्रसन्नता हुई। इसके बाद कलाचार्यने वत्सराजसे पूछा,-"हें सजन ! तुम किस कुलमें P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust