________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। nummervinnurunurrunum 'अघटितघटितानि घटयति, सुघटितघटितानि जर्जरीकुरुते / विधिरेव तानि घटयति, यानि पुमान्नैव चिन्तयति // 1 // ' अर्थात्-"विधाता अनहोनीको होनी कर देता और होनीको अनहोनी कर देता है / वह ऐसेही काम किया करता है, जिनकी मनुष्य कभी कल्पना भी नहीं करता।" . . .. "प्यारी बहनो! तुम दोनों यहाँ आकर भी क्यों छिपी रहीं ? कहीं देवयोगसे इस दुःखमें पड़ जानेके कारण लजाके मारे तो नहीं छिपी पड़ी रहीं ? अथवा मैं ही अभागिनी हूँ, इसीसे तुम हमारे नगरमें पुत्र सहित आकर रहीं और मैंने ज़रा भी यह हाल नहीं जाना। अब अधिक कहनेसे क्या?. 'यद्भाव्यं तद्भवत्येव, नालिकेरीफलाम्बुवत् / गन्तव्यं गमयत्येव, गजभुक्तकपित्थवत् // 2 // अर्थात्--'जैसे नारियल के फल में आपसे आप पानी भर जाता है, वैसेही जो होना होता है, वह तो होकर ही रहता है / और जो जानेवाला होता है, वह हाथी के खाये हुए कैथके फलकी तरह योही चला जाता है-रहता नहीं।" ___“यही समझ कर मनुष्यको मनमें चिन्ता नहीं आने देनी चाहिये / क्योंकि कहा है, कि 'सुख-दुःखानां न कोऽपि; कर्ता हर्ता कस्यचित् पुंसः। .. ____इति चिन्तय सद्बुध्या, पुराकृतं भुज्यते कर्म // 3 // '.. ... अर्थात्----'इस संसार में कोई * किसीका सुख-दुख नहीं देता, नहरण कर सकता है। सुखमें या दुःखमें मनुष्य अपने पूर्वकृत् कर्मों का ही. फल भोगता है। ऐसी सद्बुद्धि रखनी चाहिये / '. 'ब्रह्मा येन कुलालवन्नियमितो ब्रह्माण्डभाण्डोदरे। . . विष्णुयेन दशावतारगहने क्षिप्तः * महासंकटे // . . / रुद्रो येन कपालपाणिपुटके भिक्षाटनं कारितः, - सूर्यो भ्राम्यति नित्यमेव गगने तस्मै नमः कर्मणे // 4 // ':...:. / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust