________________ AAAAAAAH00-...------ - - - - - - 226 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। दोनों देवाङ्गनाएँ हैं और तुमपर स्नेह हो जानेके कारण मोहित होकर तुम्हारे पास आ पहुंची हैं। इसलिये तुम हमारी इच्छा पूर्ण करो। हमारे पति देवेन्द्र हमारे घशमें हैं, तो भी हम तुम्हारे लावण्यसे मोहित हो, उन्हें छोड़कर तुम्हारे पास चली आयी है, इसलिये हे स्वामिन् ! आपको अवश्य इमारी प्रार्थना पूरी करनी चाहिये।" यह कह, वे रात भर . तरह-तरहके अनुकूल उपसर्ग कर, उनके चित्तमें क्षोभ उत्पन्न करनेकी चेष्टा करती रही, पर राजा ज़रा भी विचलित न हुए। घे मेरु-पर्वतकी भांति अचल बने रहे। यह देख, हार मानकर उन दोनों देवाजनाओंने मेघरथ राजाको ध्यान में निश्चल जान, उनसे अपने अपराधकी क्षमा मांगी और उन्हें प्रणाम कर, उनके गुणोंकी प्रशंसा करती हुई अपने स्थानको चली गयीं। प्रातः काल प्रतिमा और पौषधकी समाप्ति फर, राजा मेघरथने विधिके साथ पारणा किया। ___एक दिन राजा मेघरथ, अपने सब सामन्तोंके साथ, परिवार-घर्गसे / घिरे हुए सभामें बैठे हुए थे। इसी समय उद्यान-पालकने आकर भक्तिपूर्वक निवेदन किया,-“हे महाराज ! मैं आपको बधाई देता है। आज आपके नगरके उद्यान में आपके पिता श्रीधनरथ जिनेश्वरने समवसरण किया है।" यह सन, राजाको बड़ा हर्ष हुआ, उनके रोमरोम खिल गये। उन्होंने उसी समय बाग़के रक्षकको इनाम दिया। इसके बाद वे कुमारों तथा हाथी, घोड़ों, सामन्तों और माण्डलिकों आदिके साथ बड़ी धूमधामसे श्रीजिनेश्वरकी धन्दना करने गये। यहाँ पहुँच, भगवान्की बन्दना कर, सब साधुओंको प्रणाम कर, भक्तिसे चित्तको सुवासित कर, घे उचित स्थानमें बैठ रहे। इसी समय श्रीजिनेश्वरने सबको समान रूपसे प्रतिबोध देनेपाली धर्मदेशना इस प्रकार सुनायी,... "हे भव्य प्राणियो! श्रीजिनेश्वरकी पूजा करने, उनकी धन्दमा करने तथा नवीन झान ग्रहण करनेमें लेशमात्र भी प्रमाद नहीं करना }} / जो पुण्यवान् जीय, धर्म-कार्य में प्रमाद नहीं करते, उनपर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust . .