________________ 153 vvvvvvvv. चतुर्थ प्रस्ताव। "उस दुरात्माने मुझसे तो ऐसा कहा, कि मैं यह गुप्त बात किसीसे . न कहूँगा और इधर आजके आजही रानीके पास आकर अपनी बड़ाई हाँक गया / इसलिये इस रहस्यका भेद कहनेवाले इस बटुकको किसी तरह गुप्त रीतिसे मरवा डालनाही ठीक है।" यही सोचकर राजाने एक सिपाहीको हुक्म दिया, कि इस बटुकको गुप्त रीतिसे मार डालो। राजाके आज्ञानुसार उसने बटुकको तत्काल मार डाला और राजासे आकर कहा, कि मैंने आपके हुक्मकी तामील कर डाली। यह सुन, राजा बड़े प्रसन्न हुए। दूसरे दिन रानीने राजासे पूछा,-"स्वामिन् ! आज वह बटुक आपके साथ नहीं दिखाई देता। वह कहाँ गया ?" राजाने कहा,-"प्रिये ! तुम उस दुष्टका नाम भी न लो।" : रानीने कहा,-"स्वामी ! उसने आपका क्या बिगाड़ा है ? वह तो बड़ाही गुणी और कौतुकी है / " तब राजाने उसका सारा कच्चा चिट्ठा कह सुनाया। सब सुनकर रानीने कहा,-"नाथ! सिंहके मारनेकी बात उस बेचारेने मुझसे नहीं कही थी। मैंने तो स्वयंही अपने महलके सातवें खण्डपर बैठकर तमाशा देखते-देखते वह हाल अपनी आँखों देखा था। इस मामले में उस बेचारेका कुछ भी अपराध नहीं है।" इतना कह रानीने फिर पूछा,–“स्वामी ! सच कहिथे वह जीता है या मर गया ?" यह सुन, राजाने बड़े अफ़सोसके साथ कहा,-"रोनी ! मुझसे तो बड़ा भारी पाप हो गया। मैंने तो उस गुण-रत्नोंके समुद्रको मरवा डाला।" इस प्रकार राजाने बड़ी देरतक उसके लिये शोक मनाया और मन-हीमन दुखी हुए ; पर अब क्या हो सकता था ? बेचारा बटुक तो चल बसा ! इसलिये जो कोई बिना विचारे काम करता है, वह बड़े पाप बटोरता है, और दुनियाँमें उसकी बदनामी भी खूब होती है / " . दुर्लभराजके कथा सुनाते-सुनाते रातका तीसरा पहर बीत गया वह वहाँसे उठकर अपने डेरेपर चला आया और उसकी जगहपर उसका चौथा भाई कीर्तिराज आ पहुँचा। राजाने उससे भी कहा,.. हे कीर्तिराज ! क्या तुमसे मेरा एक काम हो सकेगा ?" उसने कहा, Ro Ac. Gunratnasuri M.S. * Jun Gun Aaradhak Trust