________________ पश्चम प्रस्ताव। 215 डालो; पर सुनो-बन्दरोंके प्राण उनकी पूँछमें ही रहते हैं, इसलिये तुम पहले मेरी पूँछही खाओ।" यह सुन, बाघ बड़ा आनन्दित हुआ। इसके , बाद ज्योंही उसने अपने मुंहमें पूछ ली, त्यों ही वह बन्दरी छलांग मार कर दौड़ी और फुर्तीके साथ पेड़पर चढ़ गयी / यह देख झेपा हुआ बाघ अन्यत्र चला गया। इसके बाद उस निषाद पर बिना किसी प्रकारका द्वेष रखे ही उस बन्दरीने उससे कहा-,"भाई ! अब तो वह बाघ चला गया-तुम भी नीचे उतरो।" वह नीचे उतर आया / बन्दरी उसे लिए हुए अपने लतागृहमें आयी, जिसमें उसके बालबच्चे रहते थे। उन्हींके पास उसे बैठाकर वह उसके खानेके लिये फल लानेको जङ्गलमें गयी। इधर क्षुधासे पीड़ित उस दुष्ट निषादने उसीके बच्चोंको मारकर खा लिया और बेफ़िकीके साथ टांग फैलाये सो रहा। जब वह बन्दरी जङ्गलसे स्वादिष्ट फल लिये हुई आयी, तब उसने देखा, कि निषाद सोया हुआ है और उसके बच्चे ला पता है। उसने उसे उठाकर फल दिये। इसके बाद वह निषादको साथ लेकर अपने बच्चोंको खोजती हुई जङ्गलमें इधर-उधर भटकने लगी, पर उसने अपने मनमें निषादकी शरारतोंका कुछ भी ख़याल नहीं आने दिया। पहले तो उस दुष्टने उसे पेड़ परसे नीचे गिराया और अबके उसके पश्चोंको ही खा गया। इतने पर भी मानती हुई, वह सरल अन्तःकरणवाली वानरी उसके साथ-साथ अपने बच्चोंकी खोज-ढूंढ़ करने लगी। इसी समय उस निषादने अपने मनमें सोचा,-"आज तो मेरी सारी मिहनत बेकार गयी-कुछ भी हाथ नहीं लगा-भूख लगीकी लगी ही रही। अब खाली हाथ घर कैसे लो; ?" + ऐसा विचार कर उस निर्दयी और पापी निषादने उस विश्वस्त चित्त वाली ओर भाई-भाई कहकर पुकारनेवाली बन्दरीको डंडेकी चोटसे मार गिराया ओर उसे अपने काँवरमें रखकर घरकी तरफ चला / इतने में उसी बाघसे उसकी रास्तेमें मुलाकात हुई। बाघने उसे देख कर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust