________________ 214 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। जङ्गलमें पहुँच गये। उस वनमें भूखे-प्यासे और अकेले धूमते हुए राजाको एक बन्दर मिल गया। उसने राजाको खूब मीठे फल लाकर दिये और एकनिर्मल जलसे भरा हुआ सरोवर भी उन्हें दिखला दिया ।राजाने वही फल खा, पानी पी, स्वस्थ होकर सुखी मन एक वृक्षके नीचे छायामें डेरा डाल दिया / इतने में उनकी तलाशमें पीछे-पीछे चले आने वाले उनके सभी सैनिक वहाँ आ पहुँचे। इसके बाद जब राजा उन सब सैनिकोंके साथ अपने नगरकी ओर चले, तब उन्होंने उस बन्दरको भी साथ ले लिया और उसे लिये हुए अपने नगरमें आये। वहाँ पहुँचकर, ? अच्छे पकवान खिलाने लगे तथा राजाकी आज्ञासे वह अपनी इच्छाके अनुसार आम और केले आदि फल भी खानेको पाने लगा। उस बन्दरके उपकारको याद कर, राजा उसे सदा अपने पास ही रखने लगे। एक दिन वसन्तऋतुमें राजा बगीचे में जाकर हिंडोला झूलने, जलक्रीड़ा करने और फूल चुनने आदकी क्रीड़ाएँ करते हुए थक गये और वहीं सो रहे / अपनी शरीर-रक्षाका भार उन्होंने उसी बन्दरको सौंपा। इतने में राजाके मुँहके पास एक भौंरा मंडराने लगा। यह देख, स्वामी पर भक्ति रखनेवाले उस मूर्ख बन्दरने उस भौरेको तलवारसे मारना चाहा और इसी बहाने एक हाथ ऐसा जमाया, कि राजाका सिर कट गया। इसलिये हे निषाद ! तुम भी इस बंदरीके फेरमें न पड़ो, नहीं तो जैसे वे राजा अपने हितैषी वानरके करते संसार से उठ गये, वैसे ही तुम पर भी बला टूट पड़ेगी।" . ___ बाघकी यह बात समते ही उस निषादने उसी क्षण उस बन्दरीको उठाकर फेंक दिया / वह उस बाघके पास आ गिरी। उस समय बाघने उस वानरीसे कहा,-“बड़ी बीबी ! अफ़सोस न करना; क्योंकि जैसे पुरुषकी सेवा की जाती है, वैसा ही फल मिलता है। यह सुनते ही उस बन्दरीको तत्काल.बुद्धि उत्पन्न हो गयी और उसने उसीके बल पर बाघसे कहा,-"भाई ! अब तो तुम मुझे हरगिज़ न छोड़ो-खाह. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust