________________ 222 - श्रीशान्तिनाथ चरित्र / आजसे उसका विश्वास न करना।" यह सुन, वह मैना अपने स्थानको लौट गयी।" "महाराज ! इसद्गुष्टान्तले तो आप समझ ही गये होंगे, कि क्षुधातको , कृत्य-कृत्यका विचार नहीं होता। इसलिये आप मेरे आहारका प्रबन्ध कर दीजिये, जिससे मैं मर न जाऊँ।" बाज़की यह बात सुन, राजाने कहा,-"भाई ! यदि तुम भूखे हो, तो मैं तुम्हें ज़रूर अच्छेसे अच्छा भोजन दूंगा।" इसपर उस बाज़ने कहा,– 'हे महाराज! मुझे तो मांसके सिवा और कुछ खाना अच्छा नहीं लगता।" राजाने कहा,"अच्छा, मैं कसाईके यहाँसे मांस मंगवाये देता हूँ।" पक्षीने कहा,---- "महाराज ! यदि मेरी आँखोंके सामनेही किसी प्राणीके शरीरका मांस काटा जाये, तो उसी मांससे मेरी तृप्ति हो सकती है, दूसरे किसी मांससे नहीं / राजाने कहा,-"अच्छा, इसी कबूतरको तराजूपर / रखकर, मैं इसीके तोलके बराबर अपने शरीरका मांस काट कर तुमको दूंगा।” बाज़ इस बातपर राजी हो गया। इसके बाद राजाने एक तराज मँगवाकर उसके एक पलड़े पर उस कबूतरको रखा और दूसरे पलड़े पर एक तेज़ छुरीसे अपने शरीरका मांस काट-काट कर रखने लगे। इस प्रकार ज्यों-ज्यों वे अपने शरीरका मांस काट-काट कर पलड़े पर रखने लगे, त्यों-त्यों वह कबूतर भी अधिकाधिक तौल वाला होता गया। यह देख, वे साहसिक राजा, यह जानकर, कि वह कबूतर बहुत ज़ियादा वज़नका है, खुदही उस पलड़े पर बैठ गये / यह देख. सभी लोग हाहाकार करते हुए विषादके मारे कहने लगे,—“हे नाथ ! आप प्राण-त्याग करनेका साहस क्यों कर रहे हैं ? एक पक्षीके लिये आप हम सब लोगोंका अपमान क्यों कर रहे हैं ? यह तो कोई माया मालूम पड़ती है। नहीं तो आपके इतने बड़े शरीरका भार इस नन्हेंसे कबूतरके बराबर कैसे हो सकता . है ?" लोगोंके इतना कहने पर भी, स्वयं ज्ञानी होते हुए भी, राजाने, . परोपकार-प्रियताके कारण-सरलताके मारे-अपने शानका उपयोग P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust