________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र / wwwwwwwwwwwwwwwww. www कहा,-"रे दुष्ट ! तूने यह क्या कर डाला ? रे पापी! जिस बेचारी बन्दरीने तुझे अपने पुत्रकी तरह रखा था, उसीको मारते हुए क्या तेरा हाथ नहीं कांप उठा ? रे दुष्ट, पापी, कृतघ्न! जा, तू अपना / काला मुँह यहाँसे द्वार कर / तेरा मुंह देखनेसे भी पाप लगता है। मैं तुझे मारकर अपना हाथ भी कलङ्कित नहीं कर सकता ; क्योंकि उससे तेरा पाप मेरेको स्पर्श कर जायेगा।" इस तरह उसको फटकारते हुए बाघने उसे छोड़ दिया और वह अपने घर चला गया। उस समय लोगों के मुंहसे यह सब हाल सुनकर राजाने अपने मनमें विचार किया,"मैं तो बन्दरोंकी रक्षा करता हूँ और इस दुरात्माने बालबच्चों समेत उस बन्दरीको मार डाला। इसलिये उसे पकड़ कर सज़ा देनी चाहिथे; क्योंकि उसने मेरी आज्ञाका उल्लङ्घन कर डाला है। कहा है, कि "अाज्ञा-भंगो नरेन्द्राणां, गुरूणां मान-मर्दनम् / भतृकोपश्च नारीणा-मशस्त्रवध उच्यते // 1 // " अर्थात् "राजाकी आज्ञाका भंग, गुरुओंका मानमर्दन और स्त्रियों पर स्वामका क्रोध होना,बिना शस्त्रके ही बध कहलाता है।" इस प्रकार विचार कर राजाने अपने सेवकोंको आज्ञा दी और वे उसी दम उस निषादको बांधकर पकड़ लाये और घुसों तथा लाठियों से मारते हुए वध्य स्थानको ले गये। इतनेमें उस बाघने वहाँ आकर कहा,-"अरे! इसे न मारो, इसे मारना उचित नहीं।" यह सुन, राजपुरुषोंने आश्चर्यमें पड़कर उस बाघकी बात राजासे जाकर कह सुनायी। इससे राजाको मी बड़ा कौतूहल हुआ और वे भी वहाँ जा पहुँचे। तब फिर बाघ बोला, "हे राजन् ! इस पापीको मारकर आप भी इसके पापके हिस्सेदार बन जायेंगे। दुष्टात्मा प्राणी आपहीअपने कर्मों के दोषसे विपत्तिमें पड़ा करते हैं।" यही सुन, आश्चर्य में पड़े हुए राजाने पूछा,-हे बाघ! तू जानवर होकर भी मनुष्यकी " बोली कैसे बोलता है ? तुझमें ऐसी विधेक-भरी चतुराई कहाँसे आयी" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust