________________ . चतुर्थ प्रस्ताव। 163 __ अपनेको चक्रवती कहने लगे / इसके सिवा उन्होंने सहस्रायुध नामक पुत्रको युवराजकी पदवी प्रदान की। / एक दिन चक्रवर्ती राजा वज्रायुध राजाओं, मन्त्रिओं और सामंतों __ आदिके साथ सभामें बैठे हुए थे, इतने में एक युवा विद्याधर कापता हुआ आसमानसे नीचे उतरा और वज्रायुधकी शरणमें आया / उसके बादही ढाल-तलवार हाथमें लिये हुई एक विद्याधरी और गदा हाथमें लिये हुए एक विद्याधर भी आ पहुँचा / ज्योंही इस पीछेवाले विद्याधरने पहलेवाले विद्याधरको देखा, त्योंही चक्रवर्तीसे निवेदन किया,"हे महाराज! अपनी शरणमें आये हुए इस पापीका हाल सुनिये / सुकच्छ नामक विजयमें वैताढय-पर्वतके ऊपर शुक्ला नामकी पुरी है / उसमें शुक्लदत्त नामके राजा राज्य करते थे। मैं उन्हींका पुत्र हूँ। मेरा नाम पवनवेग है / मेरी स्त्रीका नाम सुकान्ता है। उसीके गर्भसे उत्पन्न __ यह मेरी लड़की है, जिसका नाम शान्तिमती है। एक बार मैंने अपनी लड़कीको प्रज्ञप्ति नामकी विद्या प्रदान की / उसी विद्याको सिद्ध करनेके लिये यह मणि-सागर नामक पर्वतके ऊपर गयी हुई थी / वहीं पर विद्याकी साधनामें लगी हुई मेरी इस पुत्रीको इस विद्याधरने उड़ा लिया। इसी बीच इसकी भक्तिसे सन्तुष्ट होकर वह विद्या इसको / सिद्ध हो गयी थी, उसीके भयसे यह दुष्ट भागा हुआ आपकी शरणमें आया है। जब मैं उस पर्वतपर अपनी पुत्रीका हाल-चाल लेनेके लिये गया, तब इसे वहाँ न देखकर मैं भी इन दोनोंका पीछा करता हुआ यहाँ तक आ पहुँचा हूँ। इसलिये हे राजन् ! आप इस दुष्टको, जो मेरी पुत्रीका शील भङ्ग करना चाहता है, छोड़ दीजिये, तो मैं इसे एक ही गदामें साफ़ कर डालूँ / " यह सुन, वज्रायुध राजाने अवधि-ज्ञानके द्वारा उसके पूर्व भवका वृत्तान्त मालूम कर, उसको समझानेके लिये कहा,-- "हे पधनवेग! जिस कारणसे इस विद्याधरने तुम्हारी पुत्रीका हरण किया है, उसे सुनो। " यह कह चक्रवर्तोंने कहना. शुरू किया और सभी सभासद् अपने स्वामीके इस ज्ञान-माहात्म्यको देख, PP. AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust