________________ . चतुर्थ प्रस्ताव / गीतार्थ हो, पृथ्वीपर अकेले विहार करते हुए वे वज्रायुधमुनि सिद्धिपर्वत नामक श्रेष्ट गिरिके ऊपर आये। वहाँ रमणीय शिलातलयुक्त वैरोचन-स्तम्भके ऊपर वे एक वर्षतक मेरुकी तरह निश्चल प्रतिमामे रहे। इसी समय अश्वग्रीव प्रतिवासुदेवके दोनों पुत्र, मणिकुम्भ और मणिध्वज, जो संसारमें परिभ्रमण कर, उस समय देवत्वको प्राप्त हो गये थे, उसी स्थानपर आये / पूज्य महर्षि वज्रायुधको देख, उन्हें दाह पैदा हुआ, इस 'लिये वे तरह-तरहके उपद्रव करने लगे। पहले तो उन्होंने तीखे दाँत. वाले भयंकर और मोटी पूँछवाले सिंह तथा बाघकारूप बनाकर महर्षिको डराया। इसके बाद हाथीका रूप बना उन्होंने मुनिपर दाँतसे भी चोट की और फन फैलाये हुए भयंकर सांप और साँपिनका रूप धारण कर उन्हें कई बार काट भी खाया। अन्तमें पिशाच-पिशाचिनीका भयावना रूप बना, उन दुष्ट देवोंने मुनीश्वरको तरह-तरह उपद्रव करके सताया ; परन्तु उनकी किसी हरकतसे मुनिको तनिक भी क्षोभ नहीं हुआ। __इसी समय देवेन्द्रकी अग्रमहिषियाँ, रम्भा और तिलोत्तमा, वज्रायुध मुनिको प्रणाम करने आयीं। उन्हें आते देखकरही वे दुष्ट देव भाग गये। उन्हें भागते देख, इन्द्रकी उन पनियोंने उन्हें डरानेके लिये खूब डाँट-फटकार बतायी। इसके बाद परिवार सहित देवाङ्गना रम्भा, मुनिके निकट, बड़े भक्तिभावसे हाव-भावादि विलासके साथ मनोहर नृत्य करने लगी और तिलोत्तमा अपने परिवारके साथ सातों स्वरों और तीनों ग्रामोंसे युक्त उत्तम सङ्गीत गाने लगी। इसके बाद वे दोनों देवियाँ परिवार-सहित मुनिको प्रणाम कर, अपने-अपने स्थान को चली गई। वज्रायुध मुनीश्वर अति दुष्कर ऐसी वार्षिक प्रतिमाका अङ्गीकार कर चारों ओर घूमते हुए पृथ्वी-मण्डलपर विहार करने लगे। एक दिन क्षेमङ्कर जिनेश्वरके मोक्षको प्राप्त हो जानेके बाद वे मुनि, राजा सहस्रायुधके नगरमें आये। वज्रायुध मुनिके आगमनका वृत्तान्त श्रवण कर, सहस्रायुध राजा बड़ी धूमधामके साथ उनके P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust