________________ 168 श्रीशान्तिनाथ चरित्र / और दूढ़रथको अपनी स्त्री सुमतिसे रथसेन नामका एक पुत्र हुआ / क्रमसे लड़कपन पारकर उन तीनों राजकुमारोंने सब कलाओंका अभ्यास किया। एक दिन राजा घनरथ, अपने पुत्रों और पौत्रोंके साथ, सिंहासन को अलंकृत करते हुए राजदरबार में बैठे हुए थे। इसी समय मेघरथ ने सब कलाओंमें निपुण अपने पुत्रोंसे कहा,-"प्यारे पुत्रो ! तुम लोग अपनी-अपनी बुद्धिका चमत्कार दिखलानेके लिये परस्पर प्रश्नोत्तर करो।" यह सुन, छोटे लड़केने प्रश्न किया: "कथं संबोध्यते ब्रह्मा ?, दानाथें धातुरत्र कः ? कः पर्यायश्च योग्यानां ? को वाऽलंकरणं नृणाम् ? // 1 // अर्थात्--"बूलाका सम्बोधन क्या है ? दानके अर्थ में किस धातुका प्रयोग होता है ! योग्य का पर्याय क्या है ? और मनुष्यों का अलंकार कौनसा है" ? यह सुन, कुछ देर विचार कर दूसरे पुत्रने जवाब दिया-कलाभ्यासः। [अर्थात् ब्रह्माका सम्बोधन है 'क', दानके अर्थ में 'ला' धातु का प्रयोग होता है, योग्यका पर्याय है 'अभ्यास' और मनुष्योंका अलङ्कार है-कलाभ्यास। इसके बाद दूसरे लड़केने पूछा,- .. " दण्डनीतिः कथं पूर्व ? महाखेदे क उच्यते ? .............. .. .. कोऽबलानां गति-लोर्क-पालः कः पंचमो मतः ? " // ... .. . अर्थात्---"प्रथम दण्डनीति कैसी थी ? बहुत बड़ा खेद प्रकट * करनेवाला कौनसा शब्द. है. ? स्त्रियों की गति कौन है ? .पाँचवाँ लोक पाल कौन कहलाता है।" . ____ यह सुन, बड़े बेटेने उत्तर दिया,- “महीपतिः " / [ अर्थात् प्रथम युगलिकके समयमें दण्डनीति 'म' मकारवाली ही थी, महाखेद प्रकट करनेवाला शब्द 'ही' है, स्त्रियोंकी गति पतिही है और पाँचा लोक-पाल 'महीपति' अर्थात् राजा है।] .... * .. . " दण्डनीतिः कथं पूर्व ? महा P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust