________________ 208 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। ख़ातिर करूँगा। लेकिन, देखना, अभी इस कुएँ में एक आदमी और पड़ा * है, उसे तुम कदापि बाहर नहीं निकालना, क्योंकि वह बड़ा भारी कृतघ्न है-किसीका अहसान नहीं मानता।" यह कह, वे तीनों अपने-- अपने स्थानको चले गये। - "इसके बाद उस ब्राह्मणने सोचा,-"उस बेचारे मनुष्यको ही क्यों कुएँ में पड़ा रहने दूँ ? यदि अपनेसे हो सके तो सभीकी भलाई करनी चाहिये। यहीतो मनुष्यके घर जन्म लेनेका फल हैं !" ऐसा विचार कर, उस विप्रने फिर कुएँ में डोरीडालीऔर उस मनुष्यको बाहर निकाला उसे देख, ब्राह्मणने पूछा,-भाई ! तुम कौन हो और कहाके रहनेवाले हो ?' उसने कहा, "मैं मथुराका रहनेवाला-सुनार हुँ। एक ज़रूरी कामके लिये इधर आ पहुँचा था और प्यासके मारे व्याकुल हो कर इस कुएँमें गिर गया था। वहाँ कुएँ में उगे हुए एक वृक्षकी शाखा पकड़ कर टिका रह गया। इसके बाद उसमें एक बन्दर, एक बाघ और एक साँप भी आ गिरे। वहाँ सबपर समान विपद थी, इसीलिये किसीका किसीसे वैर विरोध नहीं रह गया था। हे उपकारी! तुमने हम सबके प्राण बचाये हैं, इसलिये एकबार मथुरा नगरीमें अवश्य अवश्यं आओ।'. यह कह, वह भी अपने स्थानपर चला गया, वह ब्राह्मण पृथ्वी-मण्डल पर घूमता-घामता तीर्थ यात्रा करता हुआ किसी समय मथुरा-नगरीमें आ पहुँचा। वहाँ जंगलमें रहनेवाले उस बन्दरने उसे देख लिया और अपने उपकारीको पहचान कर बड़ी खुशीसे अच्छेअच्छे फल लाकर उसे दिये और इस प्रकार उसकी खातिरदारी की। इसके बाद उस बाघने भी उसे देखा और पहचान कर अपने मनमें विचार किया,-'इस महापुरुषने मुझे मरनेसे बचाया था, इसलिये उस उपकारका इसे कुछ-न-कुछ बदला ज़रूर देना चाहिये / ' यह d सोचकर वह बाग़में घुस पड़ा और वहाँ बेफ़िक्रीके साथ खेलते हुए राजकुमारको मारकर उसके तमाम कीमती गहने उतार कर ले आया, और यह सब उस ब्राह्मणके हवाले कर उसे प्रणाम किया। ब्राह्मणने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust