________________ 202 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। राजाकी आज्ञा लेकर रानीने प्रवृज्या अंगीकार कर ली। इसके बाद उद्यानकी शोभा देखते हुए राजा नगरमें आये।" . "एक दिन छमस्थ वेशमें विहार करते हुए अनन्त नामक तीर्थङ्कर - राजाके घर आये। उस समय राजाने उनको प्रासुक अन्न-पान (बहराये) दिये,देवोंने पांच दिव्यप्रकट किये / इसके बादही तीर्थङ्करको केवल-ज्ञान उत्पन्न हुआ। तय राजा अभयघोषने उनके पास जाकर अपने दोनों . पुत्रके साथ ही प्रवज्या अंगीकार कर ली / इसके बाद अभयघोष राजर्षि ने बीस स्थानकोंकी आराधना कर तीर्थङ्कर नाम-कर्म उपार्जन किया। अनुक्रमसे दोनों पुत्रोंके साथ कालधर्मको प्राप्त होकर वे अच्युत देवलोकमें जाकर देव हुए। वहाँसे च्युत होकर अभय घोष राजाका जीव तो हेमांगद राजाके पुत्र घनरथके रूपमें प्रकट हुआ और जय-विजयके जीव अच्युत कल्पसे च्युत होकर तुम दोनोंके शरीरमें आ टिके हैं / " पिताजी ! मुनिने अब इस प्रकार चन्द्रतिलक और सूरतिलकको उनके पूर्व भवकी कथा सुनायी, तब वे दोनों विद्यावर आपके दर्शनोंके लिये बड़े उत्सुक हुए और यहाँ आ पहुँचे। कुछ देर तक तो वे दोनों विद्याधर-कुमार इन मुगोकी लड़ाईका तमाशा देखा किये, इसके बाद वे अपनी विद्याके प्रभावसे इन मुर्गोके अन्दर प्रविष्ट हो, अपनेको छिपाये हुए, यहीं मौजूद है।" ____ जब मेघरथने ऐसा कहा, तब वे दोनों विद्याधर झटपट उन मुर्गों के शरीरसे बाहर निकल आये और घनरथ राजाके पैरों पर गिर पड़े। इसके बाद अपने पूर्व जन्मके पिताको प्रणाम कर, वे दोनों अपने स्थान को चले गये और वैराग्य उत्पन्न होनेके कारण संयम ग्रहण कर, दुष्कर तप करते हुए मोक्षको प्राप्त हुए। - इधर वे दोनों मुर्गे, अपने पूर्व भवोंका हाल सुन, अपने पापोंके - लिये मन-ही-मन अपनेको धिक्कार देते हुए, राजाके पैरोंपर गिर पड़े और अपनी भाषामें बोल उठे,-"प्रभो! अब हमलोग क्या करें ? " तब राजाने उन्हें समकित-सहित अहिंसाधर्मका उपदेश किया। उन्होंने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gul Aaradhak tudi