________________ Juvvvvvvvvvvvvvvvvvv.nl vvvvvvvvv . चतुर्थ प्रस्ताव। 173 ही दुःखी हुआ और सारे शहरमें उसकी खोज कराने लगा। इधर सेठके चले जानेपर सेठानीने यह देखकर, कि घरमें कोई मर्द-मानस नहीं है, अपने मन में विचार किया,-"ओह, मैंने क्रोधमें आकर पतिको घरसे दुतकार दिया, यह अच्छा नहीं किया। पहले तो सेठजीने ही मूर्खता को-पीछे मैं भी मूर्खता कर बैठी!" इस प्रकार सोचतो हुई सेठानी रोते-रोते पति-पुत्रकी राह देखती हुई, अपने घरके दरवाजेपर बैठ रही। . इधर रातके समय वट-वृक्षके खखोडलमें बैठे हुए पुण्यसारने दो देवियोंको, जिनके शरीरको कान्तिसे चारों ओर उँजेला फैलाहुआ था, इस प्रकार बातचीत करते सुना। पहलीने कहा,-"चलो बहन ! इस समय मनमाने ढंगसे पृथ्वीको सैर की जाये। रातका समय है। यह अपने लिये और भी अच्छा है।” इसपर दूसरी बोली,-"सखी ! व्यर्थ ही इधरसे उधर चक्कर लगाकर आत्माको कष्ट किस लिये देना ? इस लिये अगर कहीं कोई कौतुक हो रहा हो, तो उसे चलकर देखना चाहिये।” अबके फिर पहलीने कहा,-"अगर कौतुक देखना हो, तो वल्लभी नामक नगरमें चलो। वहाँ धन नामका सेठ रहता है। उसकी स्त्रीका नाम धनवती है, जिसके गर्भसे उसे सात लड़कियाँ पैदा हुई हैं। उनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं:-“पहलीका नाम धर्मसुन्दरी, दूसरीका धनसुन्दरी, तीसरीका कामसुन्दरी, चौथीका मुक्तिसुन्दरी, पाँचवींका भाग्यसुन्दरी, छठोका सौभाग्यसुन्दरी और सातवींका गुणसुन्दरी है। इन कन्याओंके लिये अच्छे वर मिलनेके लिये उस धना सेठने लडु वगैरह प्रसाद चढ़ाकर लम्बोदर-देवकी पूजा की। देवताने सन्तुष्ट होकर उसे प्रत्यक्ष दर्शन देकर कहा,–“सेठजी ! आजके सातवें दिन रातके समय बड़ा ही शुभ लग्न है। उस समय तुम विवाहकी कुल सामप्रियाँ तैयार रखना। उस दिन उस समय दो सुन्दर वेशवाली स्त्रियोंके पीछे-पीछे जो कोई पुरुष आयेगा, वही तुम्हारी कन्याओंका पति होगा।" पह कह, लम्बोदरदेव अन्तर्धान हो गये। आज ही वह सातवीं रात P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust