________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। रमें जा बैठा। इतने में वे देवियाँ आयीं और भर-पूर ज़ोर लगा, उस वृक्षको उखाड़ कर फिर पुराने स्थान पर रख गयीं। ___ इधर पुरन्दर सेठने सारा शहर छान डाला पर पुत्रका कहीं पता 2 न लगा / इसी तरह घूमते-घामते वह प्रातःकालके समय उसी वट वृक्षके पास आ पहुंचा / इतनेमें रात बीत गयी और सवेरा हो गया, यह जानकर पुण्यसार उस पेड़के खखोडलसे बाहर निकला और इधर-उधर घूमने लगा। सेठने उसको इस तरह मनोहर वेश और अलङ्कारादिसे अलङ्ककृत होकर घूमते हुए देख लिया। उसे इस प्रकार अद्भुत शोभासे युक्त देख, विस्मित होता हुआ सेठ, “हे वत्स ! हे वत्स !" कहता हुआ उसकी देहसे चिपट गया और कह सुनकर उसे घर ले आया। पति और पुत्रको एक साथ घर आते देख, सेठानी बड़ी प्रसन्न हुई। इसके बाद माता-पिताने उसे बड़े प्यारसे गोदमें बिठाते और आलिङ्गन करते हुए पूछा,-"पुत्र! तुम्हारा ऐसा ठाट-बाट कहाँसे हो गया ?" इसके उत्तरमें पुण्यसारने माँ बापको आश्चर्य में डालने वाली अपनी रामकहानी कह / सुनायी। उसे सुन, आश्चर्य में पड़कर, उसके माता-पिताने कहा,-"अहा ! हमारे पुत्रका भाग्य कैसा अच्छा है, कि इसने एकही रातमें इतनी ऋखि प्राप्त कर ली !" इसके बाद पिताने कहा,-'पुत्र! तुम्हें भली सीख देनेके लिये मैंने क्रोधमें आकर जो कुछ कटु वाक्य तुम्हें कहे, उनका कुछ ख़याल न करना।" पुण्यसारने कहा, "पिताजी ! आपकी शिक्षा मेरे लिये बड़ी हितकारक हुई। कहा भी है, कि "अमीय रसायण अग्गली, माय ताय गुरु सीख / . . जे उ न मन्नइ बप्पड़ा, ते रूलीया निसदीसं // 1 // " अर्थात् माँ बाप और गुरुकी शिक्षा अमृत और रसायनसे भी बढ़कर है, इसलिए जो अभागा इसे नहीं मानता, वह रात-दिन 5 रोया करता है-अर्थात् संसार में कभी. सुखी नहीं होता। .. . पुत्रका यह जवाब सुनकर मां-बापको बड़ी प्रसन्नता हुई। इसके बाद पुत्रने वल्लभीपुरमें मिले हुए लाख रूपये के अलङ्कारोंको देकर जुआ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust