________________ चतुर्थ प्रस्ताव। और स्वामीके सम्मानसे गर्वीली हो रही थी, इसलिये रोहककी धैसी सेवा-सम्हाल नहीं करती थी। इसपर नाराज़ होकर एक दिन रोहकने कहा,-"माता! तुम मेरे शरीरकी कुछ भी शुश्रूषा नहीं करती,इसलिये तुम्हारी कभी भलाई नहीं होगी।" यह सुन, रुक्मिणीने कहा,-२ नादान ! तू गुस्सा क्यों करता है 1 तेरे रंज या खुशीकी मुझे परवा ही क्या है ? तू मेरा क्या बिगाड़ लेगा ?" उसकी ये अभिमान-पूर्ण बातें सुन, रोहकने अपने मनमें सोचा,-"मैं इसकी ऐसी कोई ऐष ढूँढ़ निकालू', जिससे यह मेरे पिताके चित्तसे उतर जाये / " यही विचार कर, उसने एक दिन आधी रातके समय, एकाएक उठकर आवाज़ लगायी,-"पिताजी ! पिताजी ! अभी-अभी एक आदमी आपके घरसे बाहर निकल कर गया है।" यह सुनतेही घरके आँगनमें सोया हुआ उसका पिता जग पड़ा और पुत्रसे बोला,-"बेटा ! तुम अभी उस दुष्ट मनुष्यको मुझे दिखला दो।" रोहकने कहा, "पिताजी ! वह तो एकबारगी छलांग मार, तड़पकर भाग गया।" . यह सुनतेही रंगशूरका मन अपनी स्त्रीसे फिर गया और वह अपने मनमें विचार करने लगा,"क्या मेरी स्त्री पराये पुरुषसे फंसी हुई है ? नहीं तो यह मामला क्या है ? स्त्रियोंके यही ढंग हैं। कहा भी है, कि "ख्वोवहसियमयरधयं पि पुहवीसरं पि परिहरि / . इयरनरेऽवि पसिज्जइ, ही ही महिलाण अहमत्तं // 1 // " अर्थात्-- 'अपने रूपसे कामदेवको भी लजानेवाले पृथ्वीपतिको .... भी त्यागकर स्त्रियाँ पराये पुरुष पर अनुरक्त हो जाती हैं / श्रोह ! इन स्त्रियोंकी यह कैसी नीचता है ? - इस प्रकार विचार कर, रंगशूरने उस दिनसे अपनी स्त्रीसे बातें / करनी भी बन्द कर दी। इस बातसे बड़ी ही दुःखित होकर रुक्मिणी ने अपने मनमें सोचा,-"मेरे स्वामी मुझसे नाराज़ क्यों हो गये ? मैंने तो कभी इनकी कोई आज्ञा नहीं भड़की! किसी पराये पुरुषसे कभी - हंसकर बोली भी नहीं, फिर ये बिना किसी अपराधके ही मेरे ऊपर 3. P.Pag Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust