________________ चतुथ प्रस्ताव। इस प्रकार पुण्यसारकी कथा सुन, कनकशक्ति राजाने वैराग्यके मारे राजलक्ष्मीका त्याग कर दिया और चारित्र ग्रहण कर लिया / उनकी दोनों स्त्रियोंने भी विमलमति नामक साध्वीसे संयम ले लिया और तपस्याकी साधनामें तत्पर हो गयीं। एक समयकी बात है, कि महामुनि कनकशक्ति पृथ्वीपर विहार करते हुए क्रमश: 'सिद्धि' नामक पर्वत पर रातभरके लिये रहे। उस समय उनके पूर्व भवके वैरी हिमचूल नामक देघने वहाँ आकर बड़े उपद्रव मचाये। यह देख, खेचरोंने उस देवको रोका। इसके बाद प्रातःकाल कायोत्सर्ग करके मुनि रत्नसञ्चया नगरीमें आकर सूरनिपात नामक उद्यानमें प्रतिमा करके रहे। वहाँ शुक्लध्यान करते हुए उनके चारों घाती कर्मों का क्षय हो गया और विश्व के दीपकके समान केवल-शान उत्पन्न हुआ। उस समय देवों, विद्याधरों और असुरोंने आकर उनके केवल ज्ञान प्राप्त होनेके उपलक्षमें बड़ी धूमधामसे उत्सव किया। वज्रायुध चक्रवत्ती और अन्य मनुष्योंने भी उनकी बड़ी आदर-भक्ति की। एक समय क्षेमकर जिनेश्वर विहार करते हुए उस नगरीमें आये और ईशान-दिशामें उनका समवसरण बनाया गया। उस समय सेवकों ने चक्रवर्तीके पास आकर जिनेश्वरके आगमनपर उन्हें बधाई दी। उन्हें इस पधाईके उपलक्षमें इनाम देकर, वज्रायुध चक्रवर्ती बड़ी धूमधाम और गाजे-बाजेके साथ अपने परिवारको लिये हुए श्रीजिनेन्द्रको प्रणाम करने गये। वहाँ पहुँच, स्वामीकी तीन प्रदक्षिणा करते हुए उनकी वन्दना कर, वे धर्मदेशना श्रवण करनेके लिये उचित स्थानमें बैठ गये। देशनाके अन्तमें चक्रवर्तीके पुत्र सहस्रायुधने दोनों हाथ जोड़, जिनेश्वरको प्रणाम * कर पूछा, "हे भगवन् ! पवनवेग आदिके पूर्व भवकी बात मेरे पिताने कैसे जान ली 1 मुझे यह जानने के लिये बड़ा कौतुहल हो रहा है। इस लिये कृपाकर इसका मुझे भेद बतलाइये।" यह सुम, मगवान्ने कहा,"तुम्हारे पिता वज्रायुधने अवधि-ज्ञान द्वारा यह बात जान ली थी।" तब सहस्त्रायुध कुमारने पूछा, "हे प्रभु ! ज्ञान कितने प्रकारका है ?" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust