________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र / एक दिन उस नगरके उद्यानमें धर्मदेशना द्वारा भव्य प्राणियोंको प्रतिबोध देनेके निमित्त श्री ज्ञानसागर नामक गुरु आ पहुँचे। पुरन्दर सेठ उनकी वन्दना करनेके लिये बड़ी भक्ति के साथ अपने पुत्र पुण्यसार को संग लिये हुए उद्यानमें आ पहुँचा / और-और नगर-निधासी भी आये। देशनाके अन्तमें अवसर पाकर पुरन्दर सेठने गुरुको नमस्कार कर पूछा, –“हे प्रभो! मेरे पुत्र पुण्यसारने पूर्व जन्ममें कौनसा पुण्य किया था !" यह सुन, सूरीश्वरने अवधि-शानके सहारे उसके पूर्व भवका वृत्तान्त जानकर कहा,-"सेठजी ! खूब मन लगाकर सुनो। "नीतिपुर नामक नगरमें एक कुलपुत्र रहते थे। उन्होंने वैराग्य के कारण सुधर्म नामक मुनिसे दीक्षा ग्रहण कर ली और गुरुकी दी हुई शिक्षाको सदा स्मरण किया करते थे। एक बार गुरुने उनसे कहा,- "हे साधु ! तुम आवश्यक क्रियाका खण्डन क्यों करते हो ? व्रतमें अतिचार लानेसे बड़ा दोष होता है।” यह सुन, भयभीत होकर वे मुनि कायगुप्नि पालन करने में असमर्थ होनेके कारण मुनियोंकी तरह वैया- - वञ्च करने लगे। क्रमशः समाधि-मरण प्राप्तकर, वे मुनि सौधर्म नामक देवलोकमें जाकर देवता हुए। आयुक्षय होनेपर घे ही वहाँसे ज्युत होकर तुम्हारे पुत्रके रूपमें उत्पन्न हुए हैं। पांच समितियों और दो गुप्तियोंकी-अर्थात् सातों प्रवचन-माताओंको इन्होंने भली भांति आराधना की थी, इसी लिये इन्हें सात नारियाँ अनायास ही मिल गयीं और आठवीं कायगुप्तिकी आराधना इन्होंने बड़ी मुश्किलसे की थी, इसीलिये आठवीं स्त्री ज़रा तरदुदसे मिली। इसी लिये बुद्धिमानोंको भी धर्मके कामोंमें प्रमाद नहीं करना चाहिये / " इस प्रकार अपने पूर्वभवका वृत्तान्त सुन, विवेकी पुण्यसारने श्रावक-धर्म अङ्गीकार कर लिया और पुरन्दर सेठने वैराग्यके मारे चारित्र ग्रहण कर लिया। इसके बाद क्रमशः पुण्यसारको कितने ही बालबच्चे हुए। वृद्धावस्थामें पुण्यसारने भी दीक्षा ले ली और मरनेपर सद्गतिको प्राप्त हुआ। . पुण्यसार-कथा समाप्त / . अङ्गाकार P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust