________________ wwwmannamanna चतुर्थ प्रस्ताव / मृतिका है !" राजाने फिर पूछा,-"तुम यहाँ कैसे आये?" उसने कहा,"आपने जिस तरह आनेका हुक्म दिया था, वैसेही आया।" यह कह उसने राजासे सब कुछ विस्तारके साथ कह सुनाया। उसने कहा,महाराज ! मैंने शरीरको नहलाया तो सही ; पर उसका मैल नहीं धोया, इसलिये नहाया भी और मलीन भी बना रहा / एक नन्हेसे यकरे पर सवार होकर आया इसलिये मेरे पैर ज़मीनको छू रहे थे, अतएव मैं नतो सवारी पर था, न पैदल था। अमावस्याके ही दिन, शामको प्रतिपदा लगती थी, इसीलिये मैं आज आया ; क्योंकि यह न तो शुक्ल-पक्ष हुआ न कृष्णपक्ष। साँझको आया इसलिये न तो यह दिन हुआ, न रात हुई। गाड़ीकी लीकके बीचो-बीच आया, इसलिये न सीधी राह आया, न टेढ़ी राह / हाथमें मिट्टीका पिण्ड लेकर आया, इसलिये न ख़ाली हाथ हूँ, न भेंट लिये साथ हूँ। सिरपर चलनी रखे आया है। इसलिये न धूपमें रहा, न छाया में।" यह सुनकर राजाको मालूम हो गया, कि इसने मेरे हुक्मकी पूरी-पूरी तामील कर डाली। तब राजाने उसे खुशीसे इनाम दिया और उसका आदर करते हुए सभामें उसकी इस प्रकार बड़ाई की,-"अहा ! इस महात्माका बुद्धि-वैभव देखकर तो चित्त में यही विचार उत्पन्न होता है, .कि यह सुभाषित बहुत ही ठीक है, 'वाजिवारण लोहानां, काष्ट-पाषाण-वाससाम् / ___नारी-पुरुष-तोयानां, दृश्यते महदन्तरम् // 1 // - अर्थात्-घोडे-घोडे, हाथी-हाथीमें, लोहे-लोहेमें, लकडी-लक. डीमें, पत्थर-पत्थरमें, वस्त्र-वस्त्रमें, नारी-नारीमें, पुरुष-पुरुषमें, और जल. जलमें, भी बडा फर्क दिखाइ देता है। . इसके बाद राजाने उस दिनके लिये रोहकको पहरे पर नियुक्त किया . और आप सोने चले गये / रातका पहला पहर बीत जानेपर राजाकी मींद टूटी और उन्होंने देखा, कि रोहक सोया हुआ है / यह देख, उन्होंने पूछा,-"क्यों रोहक ! तुम सोये हो, या जागे हुए हो ?" यह सुन, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust