________________ 172 / श्रीशान्तिनाथ चरित्र। अब तो वह गहना हाथसे गया ! यह देखकर उसके जीमें यह बात आयी, कि-- ____ “यदर्थ खिद्यते लोक-यत्नश्च कियते'महान् / तेऽपि सन्तापदा एवं, दुष्पुत्रा हा भवन्त्यहो // 1 // " अर्थात् -- "अोह ! जिनके न होनेसे लोग सदा खिन्न रहा करते / हैं और जिनकी प्राप्तिके लिये बड़े-बड़े यत्न किया करते हैं, वे पुत्र भी कुपूत हो कर इस प्रकार दुःख देते हैं।" फिर सेठने सोचा,-"इस दुष्टने राजाका गहना जुपमें गँवा दिया, इसलिये ऐसे पुत्रको तो घरसे निकाल देनाही ठीक है ; क्योंकि यह पुत्रके रूपमें मेरा दुश्मन् टिका है।" ऐसा विचार कर वह दूकानपर चला गया। जब पुत्र वहाँ आया, तब उसने उससे गहनेकी बाबत पूछ-ताछ की। इसपर बेटेने बापसे सञ्चा-सच्चा हाल बयान कर दिया। यह सुन, सेठने क्रोध आकर कहा,-"रे दुष्ट ! जा, तू वह गहना ले आ। बिना लाये मेरे घर न आना।" यह कह, उसने उसको खूब फटकारा और गलेमें हाथ डाल झुझलाते हुए, उसे अपने घरसे निकाल दिया। : उस समय साँझ हो गयी थी। इसलिये वह कहीं और तो नहीं जा सकता था, इसीसे गांवके बाहर आ, एक. बड़के पेड़के खखोडलमें घुस पड़ा। सेठ जब घर आया, तब उसकी स्त्रीने पूछा,-"आज पुण्य. सार अभीतक घर क्यों नहीं आया ?" यह सुन, पुरन्दर सेठने कहा,"वह कुपूत राजाका गहना जुएमें हार आया, इसी लिये मैंने उसे सीख देनेके लिये क्रोधमें आकर घरसे निकाल दिया है। इसीसे वह घर नहीं आया है।" यह सुन, सेठानीने कहा,-"जब तुमने इतनी रातको पुत्रको घरसे बाहर निकाल दिया, तब कैसे मेरे पास अपना मुँह दिखाने आये हो ? स्वामी ! इस अँधेरी रातमें उस बालकको घरसे निकालते तुम्हें लज्जा नहीं आयी ? इसलिये जाओ, अब पुत्रको लेकर ही मेरे घर में आना।" सेठानीकी यह फटकार सुन, बेटेकी याद कर, सेठ बहुत P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust