________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। आश्चर्य में आकर बड़ी दिलचस्पीके साथ सुनने लगे। . चक्रवर्तीने कहा,. . “इसी जम्बूद्वीपके ऐरावत-क्षेत्रमें वन्ध्यपुर नामका एक नगर है / / उसमें वन्ध्यदत्त नामके राजा राज्य करते थे / उनकी रानीका नाम सुलक्षणा था, जिसके गर्भसे उत्पन्न नलिनीकेतु नामका एक पुत्र भी था। उसी नगरमें धर्म-मित्र नामका एक सार्थवाह रहता था। उसकी स्त्रीका नाम श्रीदत्ता था और उसीके गर्भसे उत्पन्न दत्त नामका एक पुत्र भी उसके था / उस लड़केकी स्त्री प्रभङ्करा बड़ी ही मनोहर रूपवती थी। एक दिन वसन्त-ऋतुमें वही दत्त नामका वणिक्-पुत्र अपनी भार्याके साथ क्रीड़ा करनेके इरादेसे बाग़ीचेमें गया। वहीं राजकुमार नलिनीकेतु भी क्रीड़ा करनेके लिये आ पहुँचे। राजकुमार उस परमा सुन्दरी प्रभङ्कराको देखतेही कामातुर हो गये / फिर क्या था ? ऐश्वर्य और यौवनके मदसे चूर राजकुमारने अपने कुल और शीलमें कलङ्क लगानेका कुछ भी विचार न कर, उस स्त्रीका हरण किया और उसके / साथ मनमानी मौज उड़ाने लगे। एक दिन दत्त अपनी स्त्रीके विरहसे व्याकुल होकर उद्यानमें आया / वहाँ उसने सुमन नामके एक साधुको देखा। उसको तत्काल केवल-ज्ञान उत्पन्न हुआ था, इसलिये बहुतसे देव, दानव और मनुष्य उनकी वन्दना करनेके निमित्त आये हुए थे / केवलीको देखकर दत्तने भी शुद्ध भावसे उनकी वन्दना की। उस समय केवलीने दत्तको धर्मदेशना सुनायी। सुनकर उसे प्रतिबोध हुआ और उसने जैनधर्म स्वीकार कर लिया। इसके बाद वह दान-पुण्य आदि करता हुआ, आयु पूरी होनेपर, मृत्युको प्राप्त हुआ और सुकच्छ-विजय के वैताढ्य-पर्वत पर महेन्द्रविक्रम नामक विद्याधरोंके राजाका पुत्र अजितसेन हुआ। उसकी लीका नाम कमला था / इधर राजकुमार / नलिनीकेतु पिताका राज्य पाकर प्रभंकराके साथ गृहधर्मका पालन करने लगे। एक दिन अपने महल की सातवीं मंजिल पर: बैठे हुए उन्होंने आसमानको पँच रंगे बादलोंसे घिरता हुआ पाया। थोड़ीही देर P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust