________________ 162 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। पहली बहूकी तरह व्रतको त्याग दिया और इस लोक तथा परलोकमें बड़े-बड़े दुःख उठाये। कितनोंहीने जीविकाके लिये वेश बना लिया। इन्हें दूसरी बहूकी तरह समझना / कितनोंने स्वयं तो व्रतका पालन 2 किया, पर औरोंको उपदेश देकर उसी तरह धर्ममें प्रवृत्त नहीं किया। इन्हें तीसरी बहूके समान जानना / और कितनेहीव्रत ग्रहण कर उनका स्वयं पालन करते हैं और अन्य अनेक भव्य जीवोंको प्रतिबोध देकर, उनसे भी व्रत-पालन कराते हैं। इन्हें चौथी बहूके समान जानना / इस लिये हे राजर्षि ! तुम भी चौथी बहूकी तरह व्रतका विस्तार करनेवाले घनो / यह कथानक श्रीमहावीर स्वामीके शासनमें हुआ है।" इस प्रकार कथा सुनाकर श्रीदत्त गुरुने राजर्षिको संयममें विशेष निश्चल कर दिया। इसके बाद राजर्षि संयमका पालन करते हुए क्रमशः सद्गतिको प्राप्त हुए। .. . श्रीक्षेमङ्कर जिनेन्द्र के कहे हुए अहिंसादिक धर्मको परीक्षा करके प्रहण करना चाहिये। इनमें धर्मका पहला लक्षण है प्राणि-दया, , दूसरा सत्यवादिता, तीसरा अदत्तका त्याग, चौथा ब्रह्मचर्यका पालन और पांचवां नौ प्रकारके परिग्रहका परित्याग। इन पाँचोंधर्म-लक्षणोंको जानकर हे भव्यजीवो! तुम निरन्तर धर्म-कर्ममें अपनी चेष्टा रखो।" श्रीक्षेमङ्कर जिनेन्द्रकी यह देशना सुनकर बहुतसे भव्य प्राणियोंने प्रतिबोध प्राप्त किया। श्रीजिनेश्वरने पहले गणधरों तथा चतुर्विध संघकी स्थापना की और इसके बाद वज्रायुध राजाने श्रावक-धर्म अङ्गीकार कर, प्रभुको प्रणाम कर, अपनी पुरीकी राहली। __ एक दिन वज्रायुध राजाके पुण्यके प्रभावसे हज़ार यक्षोंसे अधिष्ठित अति निर्मल चक्ररत्न उनकी अस्त्रशालामें उत्पन्न हुआ। राजाने अष्टाह्निका-महोत्सव करके उसकी पूजा और आराधना की। तब वह / . अस्त्रशालासे निकल कर आसमानमें उड़ चला। उसके पीछे-पीछे वज्रा युध भी अपनी सेना सहित चल पड़े और उन्होंने क्रमशः मङ्गलावती. विजयके छः खण्ड जीत लिये। इसके बाद वे अपनी नगरी में आकर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust