________________ uneorenniiminnan चतुथ प्रस्ताव मन धान हुए। पांच साल उस सेठने फिर अपने बन्धुओंको न्योता देकर बुलाया और खिलाया-पिलाया। इसके बाद उसने फिर सबके * सामने हो अपनी बड़ी बहूको बुलाकर अपने दिये हुए वे पाँचों दाने वापिस मांगे / इसपर उसने दूसरे पाँच दाने लाकर सेठके हवाले किये। सेठने कहा,—“ये तो मेरे दिये हुए दाने नहीं है।" यह कह, उसने जब बड़े आग्रहसे सौगन्द देकर पूछा, तब उसने सच-सच बयान कर दिया। यह सुन, सेठने बड़े गुस्सेके साथ कहा,- "चूंकि तुमने मेरे दिये हुए धान फेंक दिये हैं, इस लिये गोयर, राख और कूड़ाकतवार फेकना ही तुम्हारे लिये उचित कर्म है। इसलिये तुम आजसे यही काम किया करो।" इसके बाद उसने दूसरीको बूलाकर उससे भी दाने. माँगे, उसने भी दूसरे ही दाने लाकर दिये। जब उसने बदले हुए दाने देखकर उससे वहुत खोद-विनोद कर पूछा, तब उसने भी . सच-सच कह दिया, कि मैं तो उन्हें खा गयी। यह सुन, सेठने उसे रसोई बनानेका भार सौंपा। इसके बाद जब तीसरीकी बारी आयी, तब वह अपने गहनोंके डब्बेमेंसे वही पुराने चाँवल निकाल लायी। यह बात मालूम होनेपर सेठने उसे सर्व-सारभूत वस्तुओंके भण्डारका अधिकार दे डाला। अबके चौथीका नम्बर आया। उसने शालिको खेतीके द्वारा वेहिसाव बढ़ा दिया था, इसलिये उससे जब दाने मांगे गये, तब उसने गाड़ियाँ मँगवानेको कहा। उसकी ऐसी बुद्धिमानी तथा चतुराई देख, सेठने उसीको घरकी मालिकिन बनाया। इस * प्रकार चारों बहुओंको उनकी योग्यतानुसार कार्यों में नियुक्त कर वह सेठ निश्चिन्त हो गया और धर्म-कार्यमें तत्पर हो गया। __. "इस कथाको अपने अन्तरङ्ग पर इस तरह घटाना चाहिये। उस सेठके स्थानपर अपने गुरुको जानना, दीक्षित साधुओंको बहुओंके स्थानपर जानना, पाँच दानोंके स्थानपर पांचों महाव्रतोंको समझना और चतुर्विध संघको स्वजनोंका एकत्र होना मान लेना। गुरुने श्री. संघके सामने शिष्योंको पांच महाव्रत दिये। उनमें कितने शिष्योंने तो P.P. B unratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust