________________ 160 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। सो जाने पर सोती है, उनके सोकर उठनेके पहलेही जग जाती है, वह गृहिणी नहीं, गृह-लक्ष्मी है / इसीलिये सेठने विचार किया, कि इन चारों बहुओंमें कौन घरका भार सम्हालने योग्य है, इसकी परीक्षा लूं, तो ठीक समझमें आ जाये। इसके बाद सवेरा होते ही सेठने रसोयोंको हुक्म दिया; कि आज सबसे बढ़िया रसोई बनाओ। यह कह, उसने अपने सभी स्वजनों और पुरजनोंको न्योता देकर अपने घर जिमाया। इसके बाद उसने सब स्वज. नादिकको वस्त्र, ताम्बूल आदिसे सम्मानित कर उन लोगोंके सामने ही पाँच शालि-कण लेकर बड़ी बहूको देते हुए कहा,--"बेटी ! मैं तुझे ये पाँच शालि-कण देता हूँ। जब मैं माँगू, तब फिर मुझे दे देना।" यह कह उसने बहूको बिदा कर दिया। उसने बाहर आतेही विचार किया,--- "मेरे ससुरका सिर बुढ़ापेके कारण फिर गया मालूम पडता है, तभी तो इसने इतने आदमियोंको इकट्ठा कर मुझे पाँच चांवलके दाने दिथे। अब मैं इन्हें कहाँ छिपा रखू ? अच्छा, जब वह मांगेगा, तब मैं दूसरे पाँच चावल लेकर दे दूंगी।" यही सोचकर उसने वे पांचों दाने फेंक दिये। इसके बाद सेठने दूसरी बहूको भी इसी तरह बुलवा कर पांच दाने शालि-धानके दिये। उसने भी अपने मनमें विचार किया,-.."अब मैं इन चाँवलोंको कहाँ उठा रखू। जब वे माँगेंगे, तब दूसरे चाँवलके दाने दे दूंगी। पर इन्हें भी क्यों फेक ?" यह सोचकर उसने मुंह खोल कर उन दानोंको चबा लिया। इसी प्रकार सेठने तीसरी और चौथी बहूंको भी चावलके दाने दिये। तोसरीने तो उन्हें एक अच्छे से वस्त्रमें बांधकर जवाहरातके डब्बे में रख दिया और चौथीने अपने भाइयोंको बुलाकर दे दिया / उसके भाइयोंने उसके कहे अनुसार उन दानोंको . बरसातके दिनोंमें बो दिया / क्रमसे उन दानोंके बहुतसे दाने हुए। दूसरे वर्ष वे फिर बोये गये / अबके पहले से भी अधिक चाँवल उपजे। इसी तरह क्रमसे पाँच वर्षतक बोये जानेपर उन्हीं पाँच कणोंके हजारों P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust