________________ * 158 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। जो इसे नहीं मारा, वह बहुत ही अच्छा काम किया " इसके बाद ..आनन्दित होकर राजाने सारी सभाके सामने ही कहा,-" इन चारों : भाइयोंमें सब गुण भरे हुए हैं। मुझ निपूतेको मेरे कुलदेवताने मानों : चार पुत्र ही दे दिये हैं। इस लिये मैं देवराजको गद्दीपर बैठाकर . वत्सराजको युवराज बनाये देता हूँ और आप दीक्षा लेने जाता हूँ।" यह सुन, राजाके परिवारवालोंने कहा, "महाराज ! कुछ दिन और " ठहर जाइये, फिर जैसी इच्छाहो, वैसा कीजियेगा।" राजाने कहा, मेरे पूर्वजोंने भी बाल पकनेके पहले ही व्रत अंगीकार कर तपस्या करते हुए सद्गति पायी है ; परन्तु राज्यधुराको धारण करनेवाला कोई न -- होनेके कारण मैं अबतक संसारमें फंसा रह गया, इस लिये अब तो * मैं अपना यह मनोरथ अवश्य ही पूरा करूँगा।" यह कह, राजाने ज्योतिषीके बतलाये हुए शुभ मुहूर्त में देवराजको राज्यका भार सौंप दिया और वत्सराजको युवराजकी पदवी प्रदान की। इसके बाद एक दिन नगरके बाहर नन्दन नामक उद्यानमें श्रीदत्त / नामके सूरि बहुतसे परिवार साथ लिये हुए आ पहुँचे। उसी समय उद्यानके रक्षकोंने राजाके पास आकर उहें गुरुके आगमनका समाचार कह सुनाया। यह सुनते ही राजा बड़ी भक्तिके साथ वहाँ गये और गुरुको प्रणाम कर यथा स्थान बठकर सद्धर्म देशना सुनने लगे। इसके बाद उन्होंने अवसर पाकर दोनों हाथ जोड़े हुए पूछा, "हे प्रभो! पिशाचने जिस प्रकार मेरी मृत्यु होना बतलाया था, उस प्रकार मेरी मृत्यु क्यों नहीं हुई ? देवकी कही हुई बात क्यों झूठी हो गयी ?" यह सुन, सूरि महाराजने कहा, "हे राजन् ! वह कथा सुनो:... “वैश्य-वंशमें उत्पन्न गौरी नामकी जो तुम्हारी सुन्दरी स्त्री थी, . वह दुर्भाग्यवश किसी कर्मके दोषसे दूषित हो गयी और तुम्हें फूटी , आँखों भी नहीं सुहाने लगी। उसे देखते ही तुम्हें कुढ़न पैदा होती थी, इसीलिये वह उदास होकर पीहर चली गयी और वहीं रहने लगी। .वहाँ अज्ञान-तपसे अपने शरीरको घुला-घुलाकर वह मर गयी और P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust