________________ चतुर्थ प्रस्ताव। 157 को सुना दिया। सुनकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ। राजाने कहा,मैं उस पक्षीको इस ज़िन्दगीमें कभी न भूलूँ गा।" यह सुन, सचिवों और सामन्तोंने कहा,- "हे स्वामिन् ! जो मर गया, उसके लिये शोक करना ठीक नहीं / " पर उनके लाख समझाने पर भी राजाका खेद दूर नहीं हुआ / जैसे बिना बिचारे काम करनेसे पछतावा उस राजाको हुआ, वैसे ही सहसा, बिना परिणामका विचार किये, कार्य करनेसे औरोंको भी इस लोक तथा परलोकमें पराभव प्राप्त होता है। अतएव श्रेष्ठ तथा बुद्धिमान् पुरुषोंको चाहिये, कि विचार कर ही कोई कार्य करें।" ज्योंही कीर्तिराजकी यह कहानी पूरी हुई, त्योंही बाजेवाले भैरवी की ताने छेड़ने लगे / बन्दीजन मङ्गल-पाठ पढ़ने लगे। कीर्तिराज भी वहाँसे उठकर अपने स्थानपर चला गया। राजाने सोचा,-"ये सब भाई एक दिल मालूम होते हैं। इनसे मेरा काम नहीं बननेका।" ऐसा विचार कर, उन्होंने दासीके लाये हुए जलसे मुंह धोया, अच्छे वस्त्र बदले और राज सभामें आकर बैठ रहे / इसी समय देव राजाने वहाँ आ, हाथ जोड़े हुए हँसते-हँसते कहा,- “मैं इस समय श्रीमानसे एक ऐसी बात कहना चाहता हूँ, जिसकी आपको बिलकुल ख़बर नहीं है। यह सुन, क्रोधमें आये हुए राजाने भौंहोंके इशारेसे उसे वह बात कह सुनानेकी आज्ञा दी। तदनुसार देवराजने पिशाचकी बातें सुननेसे शुरूसे लेकर अन्ततककी सारी बातें, जो भय और आश्चर्य उत्पन्न करनेवाली थीं, कह सुनायीं। इसके बाद उसने विश्वास के लिये राजाके शयनमन्दिरसे टुकड़े किये हुए साँपको मँगवाकर उनको प्रत्यक्ष दिखला दिया। यह देख, देवराजके ऊपरसे राजाका क्रोध उतर गया और / वे मन-ही-मन सोचने लगे, “ओह ! इस महात्माने तो मेरे प्राण बचा. नेके लिये ऐसा जान-जोखिमका काम कर डाला और मैं ऐसा पापी हूँ, कि ऐसे परोपकारी और पुरुष-श्रेष्ठ देवराजको बिना विचारे मार डालनेकी धुनमें था। इस लिये कहानियाँ कहने में कुशल वत्सराज आदिने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust