________________ 166 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। .. च्युत होकर मनुष्य-भव प्राप्त करेंगे और दीक्षा लेकर, कर्मका क्षय कर, मोक्ष-सुख लाभ करेंगे।" यह भावी वृत्तान्त श्रवणकर सब सभासदोंको बड़ा विस्मय हुआ। वे बोले,- "अहा ! हमारे स्वामीका ज्ञान तो पदार्थोंके भूत, भविष्यत् और वर्तमान रूप बतलानेके लिये दीपकके समान है। " इसके बाद * शान्तिमती, पवनवेग और अजिप्तसेन, तीनोंही चक्रवर्सीको प्रणाम कर; अपने अपने स्थानको चले गये। सहस्रायुध कुमारको जय सेनाके गर्भसे कनक शक्ति नामका एक पुत्र उत्पन्न हुआ। वह जब युवावस्थाको प्राप्त हुआ, तब राजाने उसकी शादी कनकमाला और वसन्तसेना नामकी दो अच्छे कुलकी राजकुमारियोंके साथ कर दी / एक बार कुमार क्रीड़ा करनेके लिये एक घने जंगलमें चला गया। वहाँ कुमारने एक मनुष्यको कुछ ऊँचे उड़कर नीचेकी ओर गिरते देख कर उसके पास आकर इसका कारण पूछा। उसने कहा, * "मैं वैताढ्य-पर्वत पर रहनेवाला विद्याधर हूँ। मैं चाहे . / जहाँ आऊँ-जाऊँ पर मेरे गिरने पड़नेका डर नहीं रहता / आज यहाँ आकर मैं बड़ी देर तक रुका रह गया। मैं पीछे लौट रहा था, कि इतनेमें मैं आकाश-गामिनी विद्याका एक पद भूल गया, इसीलिये ऊपर नहीं उड़ पाता और इस प्रकार बार-बार चेष्टा कर रहा हूँ।" यह सुन, कुमारने उससे कहा, - "हे विद्याधर ! तुम मुझे यह विद्या बतलादो।" विद्याधरने उसे भला आदमी जानकर उसको वह विद्या बतला दी / उसो समय कुमारने पदानुसारी लब्धिके-प्रभावसे उसका भूला हुआ पद उसे बतला दिया। इससे सन्तुष्ट होकर आकाशचारीने अपनी ' सारी विद्या कुमारको बतला हो / कुमारने उसके कहे अनुसार विधिपूर्वक उस विद्याकी साधना की / इसके बाद वह खेचर (आकाशचारी) / अपने स्थानको चला गया। एक दिन कुमार, इसी विद्याके प्रभावसे; अपनी दोनों प्रियाओंके साथ, स्वेच्छा पूर्वक विहार करते हुए, हिमाद्रिपर्वत पर मा पहुँचा / वहाँ विपुलमति नामक विद्याधर मुनिको देख, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust