________________ चतुथे प्रस्ताव। wwwwwwwwwwwwww wwwwwwwwwwwwaar - उनके चरणों में प्रणाम कर, कुमार अपनी प्रियतमाओंके साथ उचित स्थानपर बैठ रहा / इसके बाद उसने मुनिसे इस प्रकारकी धर्मदेशना - सुनी: __ "कुलं रूपं कलाभ्यास, विद्यालक्ष्मीर्वरांगना / - ऐश्वर्य सप्रभुत्वं व, धर्मेणैव प्रजायते // 1 // " अर्थात्-- "कुल, रूप, कलाओंका अभ्यास, विद्या, लक्ष्मी, सुन्दरी नारी, ऐश्वर्य और प्रभुता-ये सब वस्तुएँ धर्मसेही प्राप्त होती ___ "जिस मनुष्यने पूर्व जन्ममें दानादि चार प्रकारके धर्मोकी आरा. धना की है, वही पुण्यसारकी भाँति समस्त मनोवांछित सुखोंको प्राप्त करता है। जैसे पुण्यसारके सारे मनोरथ पूरे हुए, वैसे ही औरोंके भी मनोरथ पूरे होंगे।” यह सुन दोनों प्रियतमाओं के साथ कनकशक्ति कुमारने पूछा,- "हे प्रभो ! वह पुण्यसार कौन था ? " यह सुन, मुनिने उसे प्रबोध देनेके निमित्त इसप्रकार कथा कह सुनायी: - भ पुण्य-सारकी कथा। इसी भरत-क्षेत्रमें बड़े-बड़े आश्चर्य-जनक पदर्थोसे भरा हुआ गोपालन नामका एक नगर है। वहाँ धर्मका अर्थी, राजासे सम्मानित और महाजनोंमें मुख्य, पुरन्दर नामका एक सेठ रहता था। उसकी स्त्री पुण्यश्री मानों सबश्रेष्ठगुणोंका आश्रय थी। वह पतिकी . प्यारी, सौभाग्यवती, भाग्यशालिनी और सुन्दर रूपवती थी। परन्तु / उसमें एक ही दोष था और वह यह, कि उसकी गोद भरी पूरी नहीं थी। सेठको पुत्रकी बड़ी लालसा थी और उसके आत्मीय-स्वजन उससे दूसरा विवाह कर लेनेको बार-बार कहा करते थे, तो भी उसने पुण्यश्री पर गाढ़ा स्नेह होनेके कारण दूसरी स्त्रीसे विवाह नहीं P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust