________________ 152 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। "पटकर्णो भिद्यते मंत्र-श्चतुष्कर्णो न भिद्यते / द्विकर्णस्य च मन्त्रस्य, ब्रह्माऽप्यन्तं न गच्छति // 1 // " अर्थात्---"छः कानोंमें पड़े हुए मन्त्रका भेद खुल जाता है , पर चार कानोंवाली बातका भेद छिपा रहता है और दो कानोंवाले मन्त्रका भेद तो ब्रह्मा भी नहीं जान पाते / " - यह सुन, राजाने कहा, "हे शुभङ्कर! यदि इस बातका भएडा फूटा तो मैं संसारमें झूठा कहलाऊँगा और मेरी बड़ी भारी बदनामी होगी" शुभकरने कहा, "हे प्रभु ! क्या आपने यह नहीं सुना है, कि सत्पुरुषोंके पेटकी बात उनके साथ ही चितापर जल जाती है। यह सुनकर राजाको दिलजमई हुई और वे शुभङ्करके साथ अपनी सेनामें चले आये। बहाँ पहुँचकर शुभङ्करने इस प्रकार अपने प्रभुका प्रताप वर्णन करना आरम्भ किया,- ओह ! जिसके नादसे मदोन्मत्त होथीका भी मद उतर जाता है, उस सिंहको मेरे स्वामीने किस तरह खिलौनेके समान मार गिराया।" यह सुनकर, सामन्तों और माण्डलिक राजा. ओंको आश्चर्यके साथ-साथ आनन्द भी हुआ। इसके बाद खूब बाजेगाजेके साथ, बड़ी धूम-धामसे राजाने अपने नगरमें प्रवेश किया। जहाँ-तहां लोग इकट्ठे होकर राजाके बल-विक्रमकी बड़ाई करने लगे। वह महोत्सवमय-दिवस क्षणकी तरह देखते-देखते बीत गया। जब राजा सभा-विसर्जन कर, रानीके महल में आये, तब उन्होंने पूछा,"स्वामी ! आज नगरमें ऐसी चहल-पहल किस लिये है ? क्योंकि बार. . बार बाजे बजनेका शब्द सुनाई दे रहा है। इसपर राजाने कहा,-"आज . मैंने एक सिंहका शिकार किया है, उसीकी बधाईमें नगरके लोग उत्सव कर रहे हैं।” यह सुन, रानीने फिर कहा, "हे नाथ! उत्तम वंशमें जन्म ग्रहण. करके भी अपनी झूठी प्रशंसा कराते हुए आपको लजा .. नहीं आती ?" राजाने कहा,-"झूठो प्रशंसा कैसे है ?" रानीने कहा,"सिंह तो मारा शुभकरने और आपको बधाई मिल रही हैं। यह कैसी बात है?" यह सुन, मन-ही-मन क्रोधित होकर राजाने सोचा, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust