________________ * चतुर्थ प्रस्ताव / इसके बाद वह शुभङ्कर, राजाकी उदारताके कारण, अन्तःपुर आदि स्थानों में भी आने-जाने लगा। एक दिन उस नगरके पास एक सिंह कहींसे चला आया, एक व्याधने आकर इसकी सूचना राजाको दी। . यह सुनते ही राजाने उसी समय चतुरंगिणी सेना, और शुभङ्कर बटुकको साथ ले, उसी समय उस सिंहको मार गिरानेके लिये नगरसे प्रस्थान किया। व्याधके बतलाये हुए रास्तेसे चलकर राजा उसी उद्यानमें चले आये, जहाँ वह सिंह मौजूद था। वनके बाहरही सारी सेनाको छोड़कर, राजा एक हाथी पर सवार हो, शुभङ्करको अपने आगे बैठाये हुए सिंहके पास आये। यह देख, वह सिंह, मुँह बाये, उछलकर राजाके पास पहुँचनेके इरादेसे आसमानमें उड़ा / उस समय यह सोचकर, कि कहीं यह सिंह मेरे स्वामीपर हमला न कर बैठे, शुभकरने उस सिंहके पास पहुँचते-न-पहुँचते उसके मुंहमें बर्खा डालकर उसे मार गिराया। यह देख, राजाने कहा,-"शुभङ्कर ! तुमने यह बड़ा बुरा काम किया। यह सिंह मेरा शिकार था, तुमने जल्दबाज़ी के मारे इसे बीचमें ही मार डाला। बात सिर्फ इतनी ही नहीं है, कि तुमने इस सिंहको मार गिराया है, बल्कि सब राजाओंके बीच मेरा जो यश छाया हुआ था, उसे भी तुमने छीन लिया।” यह सुन, बटुकने कहा, "हे देव ! मैंने यही सोचकर इस सिंहको मार डाला, कि कहीं आपके शरीरको इसके द्वारा पीड़ा म पहुँचे। मैंने कुछ अपनी बड़ाईके लिये आपके हाथसे शिकारको नहीं छीना। मैंने जो इसे मारा . है, वह भी आपके ही प्रतापसे, नहीं तो महज़ पर्छ की चोटसे कहीं सिंह मारा जाता है.१ लीजिये, मैं सब सैनिकोंसे यही कहूँगा, कि राजाने इस मृगेन्द्रको मारा है / हे स्वामी ! आप इस मामले में मेरे ऊपर क्रोध न करें। इस बातको सिर्फ हमी दोनों जानते हैं, तीसरे किसीको इसकी खबर नहीं है। चार कानोंकी बातका भएडा नहीं फूटता। कहा भी है,-- .. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust