________________ . .चतुर्थ प्रस्ताव / 146 ने विचार किया,-"अवश्यही उस फलमें साँप या किसी और ज़हरीले जानवरका ज़हर असर कर गया होगा। इसीसे वह ब्राह्मण मर गया ; नहीं तो यह अवश्यही अमृतफल था। मैंने बड़ी भारी बेवकूफ़ी की,जो बिना जाँचे-पूछे क्रोधमें आकर इस उत्तम वृक्षको कटवा डाला। शास्त्र में ठीक ही कहा है, कि सगुणमपगुणं वा कुर्वता कार्यजातं, परिणतिरवधार्या यत्रतः पण्डितेन / अतिरभसकृतानां कर्मणामा विपत्ते र्भवति हृदयदाही शल्यतुल्यो विपाकः / / 1 // " अर्थात्-''काम चाहे गुणका हो वा दुर्गुणका; पर पण्डितगण उसे करनेके पहले खूब अच्छी तरहसे उसके परिणामका विचार कर लेते हैं ; क्योंकि जल्दबाजी में पड़कर जो काम किया जाता है, उसका पछतावा छातीमें छिदे हुए शूलकी तरह मरण-पर्यन्त हृदयमें दाह उत्पन्न करता रहता है।" यही सोच-सोचकर राजा जन्मभर पछताया किये। जैसा उन्होंने बिना सोचे-विचारे काम किया, वैसा कभी किसीको नहीं करना चाहिये।" ___ इसी तरह कहानी सुनाते-सुनाते उसने रातका दूसरा पहर बिता दिया और वत्सराजका पहरा ख़तम हो गया। उसके जानेपर उसका छोटा भाई दुर्लभराज आया। राजाने सोचा, ---"वत्सराजने कथा तो बड़ीही मनोहर सुनायी ; पर मेरा काम कुछ भी नहीं किया / " अबके राजाने दुर्लभराजको पहरेपर आया देखकर उससे कहा,"हे दुर्लभराज ! क्या तुम मेरा एक काम कर दोगे ?" उसने कहा,"हाँ, ज़रूर करूँगा।" राजाने कहा,-"अच्छा, तो जाओ, अपने भाई देवराजका सिर काटकर मेरे पास ले आओ।” यह सुन, उसे भी बड़ा भारी आश्चर्य हुआ। बाहर जा, कुछ देर विचार करनेके अनन्तर वह तुरतही लौट आया और राजासे बोला,-"अभी तो मेरे दोनों P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust