________________ चतुर्थ प्रस्ताव / 155 यह सुन, राजाके सेवक तेज़ घोड़ोंपर सवार हो, भोजन और पानी * साथ लिये हुए, राजाके पीछे-पीछे दौड़े। इधर राजा, उस घोड़ेकी * चालको अच्छी तरह मालूम कर, उसे रोकनेके लिये ज्यों-ज्यों लगाम खींचने लगे, त्यों-त्यों वह और भी अधिक वेगसे चलने लगा / इस " तरह उलटी शिक्षा पाये हुए उस घोड़ेने बड़ी दूरकी मंज़िल मारी। लगाम खींचते-खींचते राजाके हाथसे खून निकल पड़ा, पर वह खड़ा . नहीं हुआ। इसके बाद जब राजाने थक कर उसकी लगाम ढीली कर दी, तब वह आपसे आप खड़ा हो गया / अब राजाको मालूम हो "गया, कि इस घोड़ेको उलटी शिक्षा मिली है / इसके बाद राजाने घोड़े * से नीचे उतर, उसके जीन-साज़ उतार दिये / इतनेमें आंतें निकल पड़नेके कारण वह घोड़ा तत्काल पृथ्वी पर गिरकर मर गया / तद"न्तर उस भयंकर वनमें, जो दावाग्निसे जल रहा था, वे राजा भूख और - प्यासके मारे व्याकुल होकर इधर-उधर घूमने लगे। इतनेमें राजाने उस - जंगलमें एक लम्बी-लम्बी शाखाओंवाले बड़े भारी वट-वृक्षको 'देखा / थके-मादे होनेके कारण राजा उस बड़के नीचे जाकर छायामें बैठ रहें / इसके बाद पानीकी तलाशमें चारों ओर नज़र दौड़ाते हुए उन्होंने देखा, कि उसी वृक्षकी एक शाखापरसे पानीकी बूंदे टपक रही हैं। यह :- देखकर राजाने अपने मनमें विचार किया- "इस वृक्षके खखोडरमें " बरसातका जल जमा है। वही इस समय गिर रहा है। ऐसा विचार कर, खदिर-वृक्षके पत्तोंका प्यालासा बनाकर, प्याससे मरे जाते हुए 'राजाने उस पानीको नीचे गिराना शुरू किया। क्रमशः वह पत्तोंका * प्याला श्याम-जलसे लबालब भर गया। उसे हाथमें लिये हुए राजाने - ज्योंही उसका जल पीना चाहा, त्योंही एक पक्षीने वृक्षसे नीचे आकर - उनके हाथसे वह प्याला नीचे गिरा दिया और फिर वृक्षकी डालपर "" जा बैठा। यह देख, मन-ही-मन क्रोधित हो, राजाने फिर उसी तरह एक पात्रमें जल भर कर उसे पीना चाहा। इतनेमें फिर उस पक्षीने : आकर वह पात्र उसी तरह नीचे गिरा दिया। तब बड़े क्रोधित होकर , P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust