________________ rammmmmmmmmarnar.narana anA चतुर्थ प्रस्ताव / और बहुत ख़राब बीमारी पैदा हो जायेगी / इधर यदि कोई बुद्धिमान विचार कर गायका दूध पीये, तो वह उसके बलको बढ़ायेगा और Lउससे उसकी पुष्टि होगी। इसी प्रकार मनुष्यको विचारके साथ धर्म का आदर करना चाहिये। यदि बिना विचारे दूसरी तरहका कार्य किया जाये, तो अमृताम्रका विनाश करनेवाले राजादिककी भाँति वह बहुत बड़ा दोष उत्पन्न करता है / अर्थात् जैसे अमृत फलवाले आम्रवृक्ष का विनाश करनेवाले राजा आदिको पश्चाताप हुआ, उसीतरह उसको भी पश्चाताप होता है। यह सुन, सभाके सब लोगोंने जिनेश्वरसे पूछा, "हे प्रभु ! बिना बिचारे काम करनेके कारण उन लोगोंको कैसे दोष हुआ, सो कृपाकर कहिये।" यह सुन, तीर्थङ्करने कहा,-'हे भव्य जनो! उनकी कथा इस प्रकार है, सुनोः___ "मालव-देशमें उज्जयिनी नामकी नगरी है / वह सारी पृथ्वीमें प्रसिद्ध है। उसमें जितशत्रु नामके राना राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम विजयश्री था / अपनी उस पटरानीके साथ विषय-सुख भोगते हुए राजा सुखसे राज्य कर रहे थे। एक दिन राजा सभामें बैठे हुए थे। इसी समयः द्वारपालने आकर विनय-पूर्वक कहा,- "हे स्वामिन् ! आपके मन्दिरके द्वारपर देखने में राजकुमारोंकी तरह रूपरंगवाले चार पुरुष आये हैं और आपके दर्शन करना चाहते हैं।" यह सुन, राजाने कहा,--'हे प्रतिहार ! उन्हें शीघ्रही अन्दर ले आओ" इसके बाद द्वारपाल उन चारों पुरुषोंको राजसभामें ले आया। वे राजा को प्रणाम कर विनयसे नम्र बने हुए खड़े रहे। राजाने उन्हें बैंठनेके लिये आसन आदि देकर सम्मानित किया और उन्हें देखकर मन-हीमन यह सोचकर, कि ये तो मेरे ही वंशके मालूम पड़ते हैं, उन्हें पान आदि देकर उनका और भी आदर किया तथा पूछा,-"तुम लोग कहाँले आ रहे हो और क्या चाहते हो?" यह सुन, उनमें जो सबसे छोटा था, वह बोला, "हे देव! उत्तर-प्रदेशमें सुवर्ण-तिलक नामक एक श्रेष्ठ नगर है। उसमें वैरी मदन नामके राजा थे, जिनकी स्त्रीका P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust