________________ ma 134 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। होनेवाले थे, इसलिये उनमें बड़ा बल था। वे दो हज़ार यक्षों द्वारा अधिष्ठित थे। इसलिये वे तत्काल उस नागपाशको काट, पर्वतको चूर-चूर कर, बेदाग शरीर लिये हुए वापीसे बाहर निकले और सब रानियों के साथ वनमें क्रीड़ा करने लगे। इसी समय इन्द्र, महाविदेह में तीर्थङ्करकी वन्दना कर, शाश्वत तीर्थकी यात्रा करनेके लिये नन्दीश्वर-द्वीपकी ओर चले जा रहे थे। उन्होंने वज्रायुधको पर्वत तोड़, नागपाश काटकर बावलीसे बाहर निकलते देख लिया / यह देख, आश्चर्यमें आ, इन्द्रने अपने शानका उपयोग कर यह जान लिया, कि वे. भावीतीर्थङ्कर हैं। यह जान, उन्होंने भक्तिपूर्वक दोनों हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया और इस प्रकार उनकी स्तुति की,-"हे कुमारेन्द्र ! तुम धन्य हो। क्योंकि तुम्हीं इस भरतक्षेत्रमें कल्याण और शान्तिके देनेवाले श्रीशान्तिनाथके नामसे सोलहवें तीर्थङ्कर होनेवाले हो / " इस प्रकार स्तुति कर इन्द्र नन्दीश्वर-द्वीप चले गये। इसके बाद कुमार भी क्रीड़ा कर अपने परिवार सहित घर आये। ___एक दिन पंचम देवलोक-वासी लोकान्तिक देवने आकर राजा क्षेमकरसे कहा, - "स्वामिन् ! अब आप धर्मतीर्थका अवलम्बन करें।' यह सुन, अपना दीक्षा-काल निकट जान, क्षेमकर राजाने वज्रायुध कुमा:रको राजगद्दी पर बैठाकर सांवत्सरिक दान किया / वर्ष के अन्तमें चारित्र ग्रहण कर, कुछ समय तक छद्मवेशमें विहार करते हुए घाती कर्मोंका क्षय कर, वे केवल-ज्ञानको प्राप्त हुए। इसके बाद उन्होंने देवताओंका समवसरण रचाया। उसमें बैठकर जिनेश्वर क्षेमङ्करने इसप्रकार देशना दी,- "हे भव्य प्राणियों! चिन्तामणि, कल्पवृक्ष और कामधेनुकी तरह धर्मकी निरन्तर सेवा करनी चाहिये। साथ ही इस धर्म की श्रुत, शील और दया आदिसे भली भांति परीक्षा। करनी चाहिये, क्योंकि बिना परीक्षा के यह आदर-योग्य नहीं। जैसे कि वैद्यकमें दूध पीना बहुत गुणकारक बतलाया गया है, यह सुन कर यदि कोई मूर्ख आकका दूध पी जाये, तो उसको आँते सड़ जायेंगी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust