________________ 132 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। था, इसलिये राजाने कुमारका नाम वज्रायुध रखा। क्रमशः धात्रियों से लालित-पालित होते हुए राजकुमार आठ वर्ष के हुए, तब राजाने उन्हें कलाओंका अभ्यास करनेके लिये कलाचार्यके पास भेज दिया। / धीरे-धीरे कुमारने सब कलाएँ सीख लीं और युवावस्थाको प्राप्त हुए, तब राजाने अनुपम रूपवती लक्ष्मीवती नामक राजकुमारीके साथ उनका व्याह बड़ी धूमधामसे कर दिया। इसके बाद कितनाही समय बीत गया। तब अनन्तवीर्यका जीव अच्युत देवलोकसे च्युत होकर कुमार वज्रायुधकी पत्नी लक्ष्मीवतीकी कोखमें पुत्रं-रूपसे उत्पन्न हुआ। समय पूरा होनेपर उसका जन्म हुआ। उसका नाम सहस्त्रायुध रखा गया / क्रमशः कलाओंका अभ्यास करते हुए वह युवावस्थाको प्राप्त हुआ / उसका विवाह राजकन्या कनकश्री के साथ हुआ। उसीके साथ रहकर भोग-विलास करते हुए उनके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम शतबल रखा गया। _एक दिन राजा क्षेमङ्कर अपने पुत्र, पौत्र और प्रपौत्रके साथ सभामण्डपमें श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठे हुए थे। इसी समय वहाँ ईशान-कल्पवासी मिथ्यात्वके कारण मोह-प्राप्त चित्रचूड़ नामका कोई देव आया। उसने राजा क्षेमङ्करके पास आकर कहा,- “हे राजन् ! जगत्में न कोई देव है, न गुरु है, न पुण्य है, न पाप है, न जीव है और न परलोक ही है।" उसकी यह नास्तिकता भरी बात सुन, कुमार वज्रायुधने उससे कहा,-- “देव ! तुम्हारी यह नास्तिकताकी बातें उचित नहीं ; क्योंकि इसके तुम्हीं स्वयं प्रमाण हो / यदि तुमने पूर्व भवमें कोई पुण्य नहीं किया होता, तो देवत्वको नहीं प्राप्त होते / पहले तुम मनुष्य थे, अब देव हो। इससे यह सिद्ध होता है, कि जीव है / यदि जीव न होता, तो शुभाशुभ कर्मोंका उपार्जन कौन करता ? और उन कर्मोंका .. भोग किसे होता.?” इस प्रकार वज्रायुधकुमारने उसको.. जीवका अस्तित्व सिद्ध करके दिखलाया और उसके अन्य संशयोंको भी हेतु, यक्ति और दृष्टान्तोंसे छिन्न-भिन्न कर डाला, जिससे उसे बोध हो P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust