________________ चतुर्थ प्रस्ताव / गया। तब देवताने प्रसन्न होकर कहा,- “हे कुमार ! आपने मेरा बहुत बड़ा उपकार किया, जो मुझे नास्तिकताके कारण भवसागरमें डूबनेसे बचा लिया।” यह कह, उसने कुमारसे समकित. सहित श्रीजिनधर्म अङ्गीकार कर कहा,- "हे धर्मके उपकारक ! मैं आपकी कुछ भलाई करना चाहता हूँ / इसलिये कहिये, मैं क्या करूँ ? देवका दर्शन कभी निष्फल नहीं जाता। " उसके ऐसा कहने पर भी जब कुमारने पूरी निस्पृहता दिखलायी, तब देवने स्वयं बहुत आग्रह करके उनको एक आभूषण दिया और उन्हें प्रणाम कर स्वर्गमें चला गया / वहाँ पहुँच कर उसने ईशानेन्द्रसे यह सब हाल कह सुनाया / यह सुन, वज्रायुधके गुणोंसे प्रसन्न होकर ईशानेन्द्रने यह जान लिया, कि कुमार भरतक्षेत्रके सोलहवें तीर्थङ्कर होनेवाले है और अपने स्थानपर बैठे हुएही उन्होंने कुमार वज्रायुधकी पूजा की। . एक दिन वसन्त-ऋतुके ज़माने में सुदर्शना नामकी एक दासीने श्री वज्रायुधकुमारको फूल देकर कहा, --'हे देव ! लक्ष्मीवती देवी आपके साथ सुरनिपात नामक उद्यानमें क्रीड़ा करनेकी इच्छा कर रही हैं।" यह सुन, कुमार वनायुधने प्रेमपूर्ण हो, तत्काल अपनी सातसौ रानियोंके साथ उसी उद्यान की यात्रा कर दी। वहाँ अनेक प्रजा-जनोंको तरह-तरहकी क्रीड़ाओंमें लगे हुए देखकर वे स्वयं भी रानियोंके साथसाथ क्रीड़ा वापीमें प्रवेश कर जल-क्रीड़ा करने लगे / इसी समय एक नवीन घटना घटी। पहले अपराजितके भवमें बज्रायुध कुमारने जिस दमितारि नामक प्रतिवासुदेवको हराया था, वह संसारमें परिभ्रमण करते हुए, बहुत दिनों तक तपस्याका अनुष्ठान करनेके पश्चात् व्यन्तर जातिका देव हो गया था। उसने वज्रायुधकुमारको जलक्रीड़ा करते देख, पूर्व भवके . द्वषसे प्रेरित हो, उनका विनाश करनेकी इच्छासे एक बड़ा सा पर्वत उखाड़ कर उसी बावलीमें फेंका और उसके नीचे पड़े हुए कुमारको बड़ी मज़बूतीसे नागपाशमें बाँध लिया। कुमार वज्रायुध चक्रवर्ती P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust