________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र / नाम चारुरूपवती था। उनकी कोखसे क्रमशः चार पुत्र उत्पन्न हुए, जिनके नाम क्रमसे देवराज, वत्सराज, दुर्लभराज और कीर्तिराज थे / पिताने चारों पुत्रोंको कलाभ्यास कराया और जब वे जवान हुए, तब उनकी शादी उनके अनुरूप कन्याओंके साथ कर दी। अन्तमें राजाको बड़ी भारी व्याधि हो गयी और उन्होंने अपने बड़े वेटे देवराजको गद्दी पर बैठा, उन्हें हित-शिक्षा दे, स्वर्ग-लोककी यात्रा की। देवराजने कुछ ही दिनों तक राज्यका पालन किया था, कि इसी बीच उसके बलवान् चाचाओंने इकट्ठा होकर बल-पूर्वक देवराजका राज्य छीन लिया और उसे तथा उसके छोटे भाइयोंको देश-निकाला दे दिया। हे देव! वही देवराज, अपने भाइयोंके साथ आपकी सेवामें आया हुआ है / " यह सुनकर हर्षित होते हुए राजाने कहा,-"तुमलोगोंने मेरे पास आकर बहुत ही अच्छा काम किया; क्योंकि सत्पुरुषोंको सत्पुरुषोंकाही आश्रय ग्रहण करना चाहिये।" यह कह, राजाने प्रतिहारीको आज्ञा देकर उनके लिये सब सामग्रियों सहित बड़े भारी महल की व्यवस्था कर दी। इसके बाद स्वामीकी भक्ति करनेमें कुशल उन चारों सेवकोंको राजाने प्रसन्नता-पूर्वक अपना अङ्ग-रक्षक बनाया। वे भी क्रमसे रातको एक एक पहरकी बारीसे शस्त्र-बद्ध होकर सोये हुए राजाके शरीरकी रक्षा करने लगे। एक दिन गरमीके दिनोंमें देवराज, राजाकी आज्ञा लेकर, पासही के एक गांवमें किसी कामके लिये गया / वहाँका काम पूरा कर, जब वह पीछे लौटने लगा, तब आधी रात ते करते-न-करते बड़ी भयंकर आंधी आयी, प्रचण्ड वायुसे धूल उड़ने लगी, बड़ी वालू उड़-उड़कर आँखोंमें पड़ने लगी, पत्तों और तृणोंसे सारा आसमान भर गया, साथही बूंदे पड़ने लगीं, बादल गरजने लगे और नेत्रोंको सन्ताप देनेवाली विजली चमकने लगी। उस समय अन्धड़-पानीसे डरकर देवराजने एक वट-वृक्षका आश्रय ग्रहण कर लिया और वहीं खड़ा हो रहा। इतने में उस वृक्षपर कुछ शब्द होने लगा। उसने सोचा,-"इस वृक्ष पर कौन है और वह क्या बोल रहा है ? यह सुनना चाहिये / " 4 * P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust