________________ चतुर्थ प्रस्ताव / nav स्त्री अथवा धनके द्रोहका होगा, नहीं तो इनको इतना क्रोध हरगिज़ नहीं होता; परन्तु मेरे बड़े भाई ऐसा कोई काम करेंगे, यह तो बिल.. कुल अनहोनीसी यात मालूम पड़ती है। कहा भी है,-.. .."ये भवन्त्युत्तमा लोके, स्वप्रकृत्यैव ते ध्रुवम् / .. अप्यंगीकुर्वते मृत्यु, प्रपद्यन्ते न चोत्पथम् / / 1 // . . . . भीता जनापवादस्य, ये भवन्ति जितेन्द्रियाः / ...... अकार्य नैव कुर्वन्ति, ते महामुनयो यथा / / 2 // . अर्थात्- 'इस लोकमें जो लोग स्वभाव से ही उत्तम हैं, वे मृत्यु-. का भले ही आलिंगन कर लें ; पर कुमार्गका अवलम्बन कभी नहीं करते / जो जितेन्द्रिय पुरुष लोकापवादसे डरते हैं, वे महानुभावों की भाँति कुकर्म नहीं करते / ' __ यही विचार कर वत्सराजने सोचा, --"राजाने तो आज्ञा दे डाली; परन्तु मैं कुकृत्य क्यों करूँ ? पर उनकी आज्ञा भी तो टालने लायक नहीं। इसलिये कुछ देर कर दूं, तो ठीक है, क्योंकि काल-विलम्ब करनेसे अशुभका निवारण हो जाता है, ऐसा विद्वानोंका कथन है।" इसी प्रकार सोच विचार कर उसने राजाके पास आकर कहा, "स्वामिन् ! अभीतक तो देवराज जगाही हुआ है। उसे जागतेमें : कोई नहीं मार सकता। इसलिये जब वह सो जायगा, तब मैं उसे मार डालूंगा।" यह सुन, राजाने उसकी बात सच मान ली। फिर वत्सराजने कहा,-"प्रभो! अच्छा हो, यदि समय बितानेके लिये आप कोई कहानी कह सुनाइये अथवा मैं कहूँ और, आप चित्त देकर सुनें / राजाने कहा, "भाई ! तुम्ही कथा कह सुनाओ।” राजाकी. यह आज्ञा पाकर वत्सराजने उन्हें यह कथा सुनायी, - :: . "इसी भरत-क्षेत्रमें पाटलिपुत्र नामका नगर है। वहाँ प्रतापी, विनयादि गुणोंसे विभूषित पृथ्वीराज नामका राजा राज्य करता था। उसकी प्राणप्रिया पत्नीका नाम सुभगा था। उसी नगरमें रत्नसार नामका . एक सेट रहता था, जो बड़ेही निर्मल आचारपाला, सदिचारयुक्त : P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust