________________ 'चतुर्थ प्रस्ताव / 143 - निग्रह करनेवाला एक मन्त्र है, उसे आप ले लें। मेरी यह प्रार्थना अवश्य ही मान लें।" यह सुन, परोपकारके साधन-रूप उस मन्त्रको उसने प्रहण कर लिया। उसे मन्त्र देकर,वह चोर भी अपने घर चला गया। . इसके बाद धनदत्त सार्थवाह वहाँसे चलकर क्रमसे कादम्बरी नामकी अटवीमें पहुँचा। वहाँ एक बड़ी भारी नदीके किनारे काफ़िलेका पड़ाव डाला गया। जब सब मनुष्य भोजनादि तैयार करनेमें लग गये, तब एक स्थानपर बैठे हुए सार्थपतिने एक शिकारीको देखा। उसके शरीरका रंग काला, आँखें लाल-लाल और हाथमें धनुष-बाण थे। उसके साथ बहुतसे कुत्ते भी थे। तो भी न जाने वह किस दुःखके कारण रो रहा था। उसे देख, आश्चर्यमें पड़े हुए सार्थपतिने सोचा,-"यह कैसी बात है ?" ऐसा मनमें आते ही उसने बड़े आग्रहसे उस शिकारीसे पूछा, "तुम क्यों रो रहे हो? इसका कारण बतलाओ।” उसने कहा,-“हे भद्र ! मेरे दुःखका कारण सुनिये। इसी पर्वतके ऊपर गिरिकुण्डिका नामका एक गाँव है। उसमें सिंहचएड नामके शूरवीर प्राम्याधिपति रहते हैं। उनकी पत्नीका नाम सिंहवती है। इस समय वह भूतकी सतायी हुई बेतरह दुःख पा रही है। उसके बचनेकी कोई आशा नहीं है और यदि वह मरी, तो हमारे स्वामी भी निश्चयही उसके वियोगमें प्राण-त्याग कर देंगे। उन्होंने उसके लिये लाखों उपाय किये ; पर तो भी उसको अपने शरीरकी सुध नहीं होती। हे सार्थपति ! मैं इसी अफ़सोसके मारे रो रहा हूँ।" यह सुन, सार्थपतिने कहा,-"हे व्याध ! यदि मैं उस स्त्रीको एक बार देख पाऊँ, तो मेरे पास जो मन्त्र है, उसका प्रयोग देखें / कदाचित् मन्त्र चल गया, तो चल ही गया।" यह सुन, उस भीलने उसी दम अपने मालिकके पास जाकर ... यह बात कही। इसके बादही वह गाँवका मालिक अपनी स्त्रीको लिये हुए उसके पास आ पहुँचा। सार्थपतिने उसी समय उस स्त्रीसे आँखें मिला, मन्त्रका जाप कर, उसका दोष दूर कर दिया। इस प्रकार उसके द्वारा अपनी स्त्रीको जीवन दान मिलते देख, ग्राम-पतिको बड़ा आनन्द P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust