________________ चतुर्थं प्रस्ताघ। 141 wwwwwwwwwwwwwwwwww उपार्जन करनेकी क्या फ़िक्र पड़ी है ? परदेशमें समय पर खानेको नहीं मिलता, कभी-कभी तो पानी भी मयस्सर नहीं होता। आराम - से सोने बैठनेका सुभीता नहीं होता। इधर तुम्हारा शरीर बड़ा कोमल .. है। इसलिये परदेश जाना ठीक नहीं। पिताकी यह बात सुन, पुत्रने . फिर कहा,-"पिताजी ! तुम्हारी उपार्जन की हुई लक्ष्मी मेरी माताके समान है। अतएव लड़कपनके सिवा और किसी अवस्थामें वह मेरे भोगने योग्य नहीं।" . . - - इसी तरहकी बड़ी आग्रह-भरी बातें कहकर उसने पिताकी आशा प्राप्त कर ली और वाहन आदि सारी सामग्रियाँ तैयार कर, काम लायक किरानेकी चीज़ ले, खाने-पीनेकी भी चीजें साथ ले, पिताकी दी हुई शिक्षाओंको चित्तमें भली भांति धारण कर, एक शुभ दिवसको सारे काफ़िलेके साथ, यात्रा कर दी। इसके बाद निरन्तर चलता हुआ वह सेठका पुत्र अपने क़ाफ़िलेके साथ कितनेही दिन बाद श्रीपुर नामक नगरमें पहुँचा। वहाँ किसी सरोवरके पास काफ़िलेका पड़ाव पड़ा। काफिलेका सरदार एक खूबसूरत तम्बूके अन्दर डेरा डालकर रहा / इसी समय एक मनुष्य, जिसकी देह काँप रही थी और आँखें डरके मारे काम नहीं देती थीं, सेठके पुत्रकी शरणमें आया। ...... / - धनदत्तने उससे कहा,-"भाई ! तुम डरो मत / केवल यही कह दो, कि तुम कौनसा अपराध करके मेरे पास आये हो।” उसने ऐसा पूछाही था कि इतनेमें मारो-मारो'की आवाज़ करते, शस्त्रधारीरक्षक वहाँ आ पहुँचे और काफ़िलेके सरदारसे बोले,–“सेठजी ! यह मनुष्य यहाँके राजाका नौकर है और उनका एक बढ़िया सा गहना लेकर जूएमें हार आया है। उस गहनेकी खोज करते हुए हमलोगोंने पता लग जानेपर राजासे जाकर कहा, तब उन्होंने जुआरीसे वह गहना लेकर हुक्म दिया, कि इस चोरको पूरी सज़ा दो, यह राजद्रोही है, इसे हरगिज़ न छोड़ो। उस समय दयालु मन्त्रियोंने राजासे कहा, कि “इस गहनेके घोरको सम्पति कारागृहमें डाल दो।" . यह सुन, राजाने भी उसे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust