________________ Ran00 - A प 000000000001 पप 9 चौथा प्रस्ताव tan COM इसी जम्बुद्वीपके पूर्व, महाविदेह-क्षेत्रमें, शीतोदा नदीके किनारे, मङ्गलावती नामक विजयमें, सिद्धान्त ग्रन्थोंमें वर्णित रत्न-सञ्चया नामकी शाश्वती नगरी वर्तमान है। वहींपर प्रजाका क्षेम करनेवाले क्षेमङ्कर' नामके राजा राज्य करते थे। वे छद्मवेशमें रहनेवाले तीर्थङ्कर थे। उनके रत्नमाला नामकी रानी थी। एक समयकी बात है, कि अपराजितका जीव बाईस सागरोपमका आयुष्य सम्पूर्णकर, अच्युत देवलोकके इन्द्रपदसे चूकर रत्नमालाको कोखमें पुत्र-रूपमें आ उत्पन्न हुआ। उस समय सुख-पूर्वक शय्यापर सोयी हुई रानीने रातको'हाथीसे अरम्भ कर, निधूम अग्निपर्यन्त चौदह महास्वप्न देखे / पन्द्रहवींबार उसने वज्रका दर्शन किया। उस स्वप्नकी बातको हृदयमें धारण किये हुए उसने प्रातः काल अपने स्वामीसे सारा हाल कह सुनाया / तब राजा क्षेमकरने उन स्वप्नोंकी बातपर मन-ही-मन विचार कर कहा,- "हे प्रिये ! इन स्वप्नोंके प्रभावसे तुम्हें बड़ा पराक्रमी पुत्र होगा।" यह सुनकर रानी बड़ी हर्षित हुई। इसके बाद समय पूरा होनेपर रानीने शुभ ग्रह-लग्नके समय पुत्र रत्न प्रसव किया। तत्काल दासियों . ने राजाके पास जाकर पुत्र-जन्मकी बधाइयां दीं / राजाने हर्ष की अ धिकतासे दासियोंको इतना धन दान कर दिया, जिससे उनकी जीवनपर्यन्त जीविकाका निर्वाह होता रहे। तदनन्तर राजाने पुत्र-जन्मका उत्सव बड़ी धूमधामसे मनाया। रानीने पन्द्रहवाँ स्वप्न वज्रका देखा BAC.amratnasuniM.S. Jun Gun Aaradhak Trust