________________ तृतीय प्रस्ताव / 126 पीड़ित प्राणियोंको सुश्रुतमें* बतलाये हुए श्रेष्ठ धर्मोषधका सेवन करना चाहिये। इस प्रकार गणधरकी देशना श्रवण कर, अपराजित बल1 देव , शोक त्याग कर, गणधरकी वन्दना कर, घर आये और अपने पत्रको राजगद्दी पर बैठा कर राजाओंके समूहके साथ उन्हीं गणधरसे दीक्षा ले ली। इसके बाद बहुत दिनों तक कठोर तपस्या करनेके पश्चात् अनशन-व्रतका अवलम्बन कर, शुभ ध्यान करते हुए, मृत्युको प्राप्त होकर अच्युत-देवलोकमें जा देवेन्द्र हुए। इस जम्बुद्वीपके भरतक्षेत्रमें वैताढ्य-पर्वतके ऊपर उसकी दक्षिण श्रेणीमें गगन-वल्लभ नामका नगर है। उसमें किसी समय मेघवाहन नामक विद्याधरोंके राजा राज्य करते थे। उनकी रूप-लावण्यमयी भार्याका नाम मेघमालिनी था / अनन्तवीर्यका जीव ऊपर कहे हुए नरकमेंसे निकलकर उसी रानीकी कोखमें आया और समय आनेपर वही मेघनादके नामसे उनका पुत्र प्रसिद्ध हुआ। क्रमशः वह युवावस्थाको प्राप्त हुआ।. उसके पिताने उसकी शादी बहुतसी राजकन्याओंके साथ कर दी। कुछ काल व्यतीत होनेपर राजाने उसीको अपना राज्य देकर आप दीक्षा ग्रहण कर ली।.. राजा मेघनाद, दोनों श्रेणियोंके स्वामी हुए। उन्होंने वैताढ्य-पर्वत पर बसे हुए एक सौ दस नगरोंको अपने पुत्रोंके बीच बाँट दिया / एक दिन राजा मेघनादने मेरु-पर्वतके ऊपर जाकर शाश्वती जिन-प्रतिमाओं और प्राप्ति-विद्याकी पूजा की। इतनेमें वहाँ स्वर्गवासी देवगण आ पहुँचे। वहीं अपराजितका जो जीव अच्युतेन्द्र हो गया था, वह भी आया। अच्युतेन्द्रने मेघनादको देख, स्नेहसे अपने पास बुला, उनको पूर्व भवका सारा वृत्तान्त सुनाकर धर्मका प्रतिबोध दिया। इसके बाद व (अच्युतेन्द्र ) अपने स्थानको चले गये। परन्तु मेघनाद खेचरेन्द्रने 28 इसी नामका एक वैद्यक ग्रन्थ है। दूसरे पक्षमें सु अर्थात् उत्तम श्रुत अर्थात् सुना हुअा--आगम।। PRG Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust