________________ onnannnnnnnnnnnn hi.vRNAAAAA W.A तुतीय प्रस्ताव। 127 जोड़कर अपराजित तथा अनन्तवीर्यसे कहा,-“हे श्रेष्ठ पुरुषो! यदि तुम आज्ञा दो, तो मैं चारित्र ग्रहण कर लूं।" उन्होंने कहा, - एक . बार सुभगापुरीमें चलो। वहाँ जानेपर स्वयंप्रभ नामक जिनेश्वरसे दीक्षा ग्रहण कर लेना।" यह सुनकर कनकश्री सन्तुष्ट हो गयी। बलदेव और वासुदेव भी उन कीर्त्तिधर मुनिको प्रणाम कर, विमानपर बैठे हुए उस कन्याके सहित अपनी पुरीमें चले आये। एक बार श्रीस्वयंप्रभ तीर्थङ्कर पृथ्वीपर विहार करते हुए सुभगापुरीमें आथे। उसी समय बलदेव और केशवने वहाँ जाकर, प्रभुकी वन्दना कर, कनकधी सहित धर्म श्रवण किया। कनकश्री पहलेसे तो विरक्त थी ही, जिनेश्वरकी वाणी श्रवणकर उसे और भी वैराग्य हो आया और उसे व्रत ग्रहण करनेकी अभिलाषा उत्पन्न हुई। बलदेव और वासुदेवने बड़े हर्षके साथ उसका दीक्षा-महोत्सव किया / दीक्षा ग्रहण कर, कनकश्री, एकावली आदि उत्कृष्ट तप करने लगी। तदनन्तर शुक्ल-ध्यान करती, चार घाती कर्मोंका क्षयकर, केवल-ज्ञान प्राप्त कर उसने मोक्ष पा लिया। ___ अपराजित नामक बलदेवकी स्त्रीका नाम विरता था। उसीके गर्भसे उसके सुमति नामकीपुत्री उत्पन्न हुई थी। वह बचपनसे ही जीवाजीवादिक तत्त्वोंके जाननेमें निपुण,तप-कर्नामें उद्यमशील और श्रीजिनधर्ममें प्रीति रखनेवाली थी / एक दिन उपवास और पारणामें समता रखनेवाले इन्द्रियोंके दमन करनेवाले और क्षमा गुणसे शोभित वरदत्त नामक मुनि थालमें मनोहर भोजन परोसे हुए थी। उसीमें से उसने शुभ-भावनासे युक्त होकर मुनिको भोजन कराया। उसी समय उत्तम मुनिको दान करनेके प्रभावसे उसे तत्काल उसकी भक्तिसे रञ्जित देवोंने पाँच दिव्य प्रकट किये। मुनि अपने स्थानको चले गये। यह आश्चर्य देख, बलदेव और वासुदेव विचार करने लगे,-"यह कन्या बड़ी पुण्यशालिनी है, इसलिये धन्य है।" ऐसा विचार कर, उन्होंने कन्याको विवाह Jun Gun Aaradhak Trust