________________ ~..wwwwwwnera 128 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। योग्य हुई देख, मन्त्रियोंके साथ विचार कर, बड़े आनन्दके साथ स्वयंवर-मण्डप रचाया। इसके बाद चारों दिशाओं में पत्र भेज कर उन्होंने सब राजाओंको बुलवाया / स्वयंवरके समय सब लोग आकर मण्डपमें / बैठ रहे। इसके बाद कन्या भी सब शृङ्गार किये, हाथमें वर-माला लिये शुभमुहूर्तमें मण्डपमें आयी। इतनेमें उसके पूर्व भवकी बहनदेवता, जिसको उसने पूर्व भवमें अपनेको प्रतिबोध देनेका संकेत किया था, आ पहुँची और उसको व्रत लेनेके लिये प्रतिबोध देने लगी। इससे वह प्रतिबोध प्राप्त कर, गुढ़ वैराग्यवती हो गयी। बस, स्वयंवरमें आये हुए सब राजा लोगोंसे विदा मांगकर,वह बलदेव और केशवकी सम्मति ले, पाँच सौ कन्याओं सहित संयम अङ्गीकार कर, सुव्रता नामक अपनी गुरुआनीके पास आकर रहने लगी। तदनन्तर निर्मल तपस्या कर, क्षपकश्रेणी पर आरूढ़ हो, केवल-ज्ञान प्राप्त कर, भव्य प्राणियों को प्रतिबोध देकर सुमति साध्वी होकर मोक्षको प्राप्त हुई। ___ अनन्तवीर्य वासुदेव, चौरासी लाख पूर्वका आयुष्य पूर्ण कर, / मरणको प्राप्त हो, निकाचित कर्मके योगसे, बयालीस १जार वर्षके आयुष्यवाले नरकमें जाकर नारकी हुए। राजा अपराजित बहुत दिनों तक बन्धुसे वियोग हो जानेके कारण अत्यन्त शोकाकुल रहे। उस समय धर्ममें निपुण एक मन्त्रीने उनसे कहा, "हे स्वामिन् ! जब आप जैसे महापुरुष भी मोहरूपी पिशाचसे.छले जाते हैं, तब धैर्य-गुण किसके पास जाफर रहेगा ?" यह सुन, बलदेवका दुःख बहुत कुछ दूर हुआ। एक दिन यशोधर नामक गुणधर महाराज वहाँ आ पधारे। उनके आगमनका वृत्तान्त श्रवण कर, राजा अपराजित सोलह हज़ार राजाओंके साथ उनकी वन्दना करने गये। वहाँ पहुँच, गणधरकी वन्दना कर, वे लोग हाथ जोड़े हुए, उचित स्थानों पर बैठ गये। उस समय गणधर ... महाराजने इस प्रकार देशना दी, - “इष्ट जनोंके वियोगसे उत्पन्न होने वाले शोकको सत्पुरुषगणोंको चाहिये, कि त्याग दें; क्योंकि पूर्वाचार्योंने इसको पिशाचकी उपमा दी है। इष्ट-वियोग-रूपी महारोगसे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust