________________ 120 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। . गजकी विद्यामें निपुण कुमारने कभी सामने जाकर, कभी पीछे हरकर और कभी उछलकर उस हाथोको हैरान कर मारा और अन्त में उसे वशमें कर लिया। तदनन्तर उस ऐरावत जैसे हाथी पर सवार , हो नरसिंहकुमार इन्द्रकी शोभा धारण किये हुए उसे फ़ीलखानेमें ले आये और उसे आलान-स्तम्भमें बांध दिया। उसके बाद हाथीसे नीचे उतर कर उन्होंने उस हाथीकी आरती उतारी और विनयसे नम्र बने हुए पिताके पास आये। पिताने हर्षपूर्वक उनको आलिंगन कर अपने मनमें विचार किया,-"मेरा यह पुत्र राज्यका भार वहन करनेमें पूर्णरूपसे समर्थ हो गया है, इसलिये इसीके ऊपर राज्यका भार सौंप कर मुझे संयमका ही राज्य स्वीकार करना चाहिये।" ऐसा विचार कर राजाने सब मन्त्रियों, सामन्तों और पुरजनोंके सामने शुभमुहूर्तमें नरसिंहकुमारको अपनी गद्दी पर बैठा दिया और आपने जयन्धर गुरुसे दीक्षा ले ली। राज्य पाकर राजा नरसिंह बड़े न्यायके साथ प्रजाका पालन करने / लगे। एक समयकी बात है, कि एक बड़ा भारी मायावी चोर, जो किसीको दिखलाई नहीं देता था और किसीसे पकड़ा नहीं जाता था, उस नगरमें आया और उसने कितनेही घरों में कई बार चोरी की। नगरके महाजनोंने यह बात राजाके कान तक पहुँचायी। राजाने उस चोरको पकड़ कर दण्ड देनेके लिये कोतवालको हुक्म दिया ; पर वह चोर कोतवालसे नहीं पकड़ा गया। उलटा और भी नगरवालोको तंग करने लगा। इस पर महाजनोंने फिर राजाके पास फ़र्याद की,-“हे देव ! इस दुष्ट चोरने आपके समस्त नगरमें हलचल सी मचा रखी है। वह रातको ज़बरदस्ती जवान और खूबसूरत औरतोंको पकड़ ले जाता है। इसलिये आप कृपाकर हमें ऐसी कोई जगह बतलाइये जहाँ हम इस उपद्रवसे बचे रहें।" उनकी ऐसी बातें सुन, क्रोधसे थर-थर काँपते हुए राजाने कोतवालको बुलाकर कहा,-रे दुष्ट ! तू बैठा-बैठा मनमानी तनख्वाह खाया करता है और नगरकी रक्षा MAC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust