________________ 116 तृतीय प्रस्ताव। मूल साक्षात् अनर्थक रूप ही है। ऐसा निश्चय करके उत्तम जीवोंको अपनी अस्थि-मजाको भी धर्मसे ही वासित करना चाहिये।" ___यह सुन श्रीदत्ताने पूछा, "हे भगवन् ! धर्म तो अरूपी है, उससे अस्थि-मजा कैसे वासित की जा सकती है ?" यह सुन, सुव्रत मुनिने श्रीदत्ता तथा अन्य पुरजनोंको वाञ्छित अर्थको सिद्ध करनेवाली यह कथा कह सुनायी, नरसिंह राजर्षि की कथा 0 "उजियनी-नगरीमें जितशत्रु नामके राजा थे। उनकी स्त्रीका नाम धारिणी था। उनके पुत्रका नाम नरसिंह था। जब वह राज. कुमार क्रमशः सब कषायोंका अभ्यास कर युवावस्थाको प्राप्त हुआ, तब राजाने उसका विवाह बत्तीस मनोहर रूपवती कन्याओंके साथ कर दिया। एक समयकी बात है, कि जाड़ेके दिनोंमें एक जंगली हाथी नगरमें आकर उपद्रव करने लगा। वह हाथी मदके मारे मतवाला हो रहा था, उसका रङ्ग शंखकी तरह सफ़ेद था, उसका शरीर पर्वतकी तरह बड़े भारी डील-डौलवाला था। वह यमराजकी तरह लोगों को दुःख दे रहा था। उस हाथीको देखकर डरे हुए लोगोंने राजाके पास जाकर फ़र्याद की। यह सुनकर राजाने उसका उपद्रव दूर करनेके लिये स्वयं अपनी सेना भेजी ; पर जब वह बलवती सेना भी उस जंगली हाथीका उपद्रव न रोक सकी, तब राजा स्वयं तैयार हुए और वीरोंकी सेना साथ ले, उस हाथोकी तरफ जाने लगे। इसी समय राजकुमार नरसिंहने उन्हें रोका और आपही सैन्य समेत उस हाथीको मर्दन करनेके लिये चल पड़े। पास पहुँचकर राजकुमारमे उस नौ हाथ लम्बे, सात हाथ ऊँचे, तीन हाथ चौड़े, लम्बे दाँत और लम्बी सूंडवाले, छोटी पूँछवाले, मधुकी भांति पीले-पीले लोचनोंवाले और सारे शरीरमें एक सौ चालीस लक्षणोंसे युक्त हाथीको देखा। तदनन्तर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust