________________ wwwwwwwwwwwwwwwwww 122 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। आचार देखे ; पर कहीं भी मुझे धन नहीं मिला। यह सुनकर उस त्रिदण्डीने अपने मनमें विचार किया,-"यह आदमी सचमुच कोई परदेशी और धनका इच्छुक मालूम पड़ता है।" ऐसा विचार कर उस.. त्रिदण्डीने कहा, "हे पथिक ! यदि तू मेरी बात मानकर चले तो थोड़े ही दिनमें मनवाञ्छित फल पा जाये / " इसपर राजाने कहा,-"हे त्रिदण्डी ! जो कोई अपना वाञ्छित फल देता है, उसकी आशामें तो मनुष्य रहता ही है / " यह सुनकर त्रिदण्डीने कहा,-"मुसाफ़िर ! देख, रातका समय हो गया है, जिसमें परस्त्री-गमन करनेवालों और चोरोंको अपना मतलब पूरा करनेका खूब मौका मिलता है। इन लोगोंको यह समय बहुत. पसन्द है। अतएव तू यहीं हाथमें खड्ग लिये खड़ा रह। मैं नगरमें जाकर किसी धनी मनुष्यके घरसे बहुत सा धन लिये आता हूँ।" उसकी यह बात सुन, राजाने अपने मनमें सोचा,-"हो न हो, यही वह चोर है। तो फिर क्यों नहीं मैं इसी खड्गसे इसका सिर उतार लूं। अथवा देखू तो सही, यह क्या करता है ?" ऐसा विचार कर राजाने खड्ग बाहर निकाला, जिसे देखकर योगीने अपने मनमें विचार किया,-"इस खड्गसे तो यह राजा मालूम पड़ता है, तब तो जैसे हो वैसे, मुझे इसे मार ही गिराना चाहिये।" ऐसा विचार कर, वह कुछ दूर आगे बढ़कर फिर पीछे लौट आया। तब राजाने कहा,"अब क्यों देर कर रहे हो ?" उसने जवाब दिया,-"अभी नगरके लोग जागते होंगे, इसलिये थोड़ी देर यहीं विश्राम करता हूँ।" यह कह, कुछ देर विचार कर उसने कहा, "हे पथिक ! यहीं पत्तोंकी सेज बिछाओ।" यह सुन, राजाने उसके लिये तत्काल ही पत्तोंकी सेज बिछायी और दूसरी अपने लिए तैयार की। उन्हीं सेजोंपर दोनों - - सो रहे। उस समय त्रिदण्डोने सोचा,-"जबतक मैं जागता रहूगा, तबतक यह कभी न सोयेगा।" इसलिये वह चोर नींदका बहाना कर सो रहा / तब राजाने धीरे-धीरे उठकर अपनी जगह पर काठका P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust