________________ तृतीय प्रस्ताव। 117 हैं। पहला कारण मिथ्यात्व है। मिथ्यात्वका अर्थ सत्य-देव, सत्य.. गुरु और सत्य-धर्मके ऊपर श्रद्धा न होना है। दूसरा कारण अविरतिका तनिक भी त्याग नहीं करना है। तीसरा कारण कषाय अर्थात् क्रोध, मान, माया और लोभ करना है। चौथा कारण प्रमाद, जिसके चार भेद हैं / इनमें पहला प्रमाद, काष्ठ तथा अन्नसे उत्पन्न दोनों प्रकार के मद्योंका सेवन करना है। दूसरा प्रमाद है,-शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श-ये पाँच इन्द्रियोंके विषय / तीसरा प्रमाद है, - निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला और स्त्यानर्द्धि-थे पाँच प्रकारकी निद्राएँ। चौथा प्रमाद है,-राज-कथा, देश-कथा, स्त्री-कथा और भक्तः (भोजन) कथा—ये चार प्रकारकी विकथाएँ। ये चारों प्रकारके प्रमाद चौथे बन्धके कारण होते हैं। दुष्ट योगका अर्थ है-मन, वचन और कायाके अशुभ व्यापार / ये पाँचवें बन्धके कारण होते हैं। इन सब पाप-बन्धोंके कारणोंका त्यागकर, मोक्षके सुख देनेवाले धर्ममें मति करनी चाहिये।" . इस प्रकारकी देशना श्रवणकर, राजा दमितारिकी पुत्री कनकश्रीने विनय-पूर्वक कीर्त्तिधर मुनिसे पूछा,–“हे मुने ! मेरा अपने भाई-बन्धोंसे जो वियोग हुआ और मेरे पिताकी मृत्यु हो गयी। इसका क्या कारण है ? कृपाकर बतलाइये।" यह सुन, मुनिने कहा, "हे भद्रे ! तुम अपने बन्धु-वियोग और पिताकी मृत्यु आदिके कारण सुनो,- . ___ “धातकीखण्ड नामक द्वीपमें, जो पूर्व भरतक्षेत्रमें , शङ्खपुर नामका नगर है, वह बड़ी समृद्धिवाला है। उस नगरमें श्रीदत्ता नामकी एक निर्धन स्त्री रहती थी, जिसके कोई सन्तान नहीं थी। वह दूसरोंके घर काम-धन्धा करके अपना पेट पालती थी। एक बार उसने दरिद्रतासे पीड़ित होनेपर भी मुनिसे धर्म श्रवणकर धर्मचक्रवाल नामक तप किया। उस तपमें पहले और पीछे "अट्ठम” करना होता है और मध्यमें सैंतीस उपवास करने होते हैं। इसके बाद तप सम्पूर्ण होने पर शक्तिके अनुसार देव और गुरुकी भक्ति करनी होती है। उस बेचारीने ठीक विधिके अनुसार तप कर, पारणाके दिन सब किसीको मनोहर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S: Jun Gun Aaradhak Trust