________________ तृतीय प्रस्ताव / है ? इसलिये मुझे तो कुछ दुःख उठाकर भी इसका आश्रय ग्रहण ... __ करना चाहिये। राज्यका लाभ तो सुलभ है; परन्तु ऐसा स्नेही मनुष्य मिलना बड़ा हो दुर्लभ है।" ऐसा विचार कर उसने कहा,"हे भाग्यवान् ! मेरे प्राण भी तुम्हारे अधीन हैं। मैं तुम्हारे साथ चलनेको तैयार हूँ। क्या तुमने नहीं सुना है, कि,- ... "अंधो नरिंदचित्तं, वरसाणां पाणिय च महिला य / .. तत्तो गच्छंति फुडं, जत्तो धुत्तेहिं निजति / " अर्थात्--"अन्धा मनुष्य, राजाका मन, बरसातका पानी . और स्त्री इन्हें जिधर धूर्त लोग ले जाते हैं,उधर ही ये चले जाते हैं। . यह सुन, अपना मनोरथ सफल हुआ समझकर मित्रानन्दने राज- . कुमारीसे कहा,- "हे सुंदरी! जब मैं तुम्हारे सिरपर सरसोंके दाने . छौडूं, तब तुम उनको फूंक मारना / " राजकुमारीने यह बात स्वीकार . कर ली। इसके बाद उसने राजाके पास आकर कहा,- “राजन् ! मैं इस महामारीको वशमें ला सकता हूँ ; पर आप एक तेज चालका. घोड़ा मैंगवाकर तैयार रखिये, जिसमें मैं उसी पर चढ़ाकर रातोरात आपके देशसे बाहर ले जा सकूँ। अगर कहीं राहमें सूर्योदय हो गया, . तो वह वहीं रह जायगी। यह सन, डरे हुए राजाने एक हवाकी सी. तेज चाल वाला मनोभिष्ट नामक अच्छी नसलका घोड़ा तैयार करवा कर. उसके सुपुर्द किया। इसके बाद सन्ध्याके समय राजाके सेवक राजकुमारीको राजाके हुक्मसे बाल पकड़ कर ले आये और मित्रानन्दके, हवाले कर दिया। उस समय उसने ज्योंही उसके ऊपर सरसोंके दाने छोड़े, त्योंही वह फुफकार सी छोड़ने लगी। इस पर मित्रानन्दने उसे बड़े ज़ोरसे ललकारा, जिससे वह शांत हो गयी। इसके बाद उसने राजकुमारीको घोड़े पर बैठा, आगे रवाना कर दिया और आप उसके पीछे-पीछे चला / राजा दरवाजे तक उसे पहुँचा कर महलोंमें लौट आये। इसके बाद मार्गमें जाते-जाते राजकन्याने मित्रानन्दसे कहा, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust